गंगा दशहरा का पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। यह पर्व गंगा मैया के धरती पर अवतरण की स्मृति में मनाया जाता है और इस दिन का विशेष महत्व गंगा स्नान, दान-पुण्य और पितृ तर्पण से जुड़ा होता है। धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पूजा के समय ‘गंगा स्तोत्र’ का पाठ करने से पितर प्रसन्न होते हैं और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
गंगा स्तोत्र का उल्लेख पुराणों और धार्मिक साहित्य में मिलता है। यह स्तोत्र मां गंगा की महिमा का गुणगान करता है और गंगा दशहरा पर इस स्तोत्र का पाठ करने से मन शुद्ध होता है तथा आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। विशेषकर जब कोई व्यक्ति पितरों की पूजा करता है और गंगा जल से अभिषेक करते हुए गंगा स्तोत्र का पाठ करते है, तो यह क्रिया पितृ संतोष का प्रमुख साधन बन जाती है।
गंगा स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल स्नान के बाद, शुद्ध वस्त्र धारण करके किया जाता है। एक स्वच्छ स्थान पर गंगा जल का पात्र रखें, पास में दीपक और अगरबत्ती जलाएं। फिर शांत मन से नीचे दी गई पंक्तियों का श्रद्धापूर्वक उच्चारण करें:
देवि सुरेश्वरी भागीरथि गंगे त्रिभुवन-तारिणि तरल तरंगे। शङ्कर-मौलि-विहारिणि विमले मम मतिरास्तां त्वयि सदा॥१॥
गंगा जल को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है। इसका स्पर्श मात्र से पापों का नाश होता है। इसलिए जब इस जल के साथ गंगा स्तोत्र का पाठ किया जाए, तो यह पुण्य फल कई गुना बढ़ जाता है। विशेष रूप से यदि यह पाठ गंगाजल से स्नान या अभिषेक के समय किया जाए, तो व्यक्ति को मानसिक शांति, आत्मिक शुद्धि और पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
मैली चादर ओढ़ के कैसे,
द्वार तुम्हारे आऊँ,
मैं आया हूँ तेरे द्वारे,
गणराज गजानन प्यारे ॥
दीवाना हूँ महाकाल का, उज्जैन के सरकार का,
लाल लाल चुनरी सितारों वाली,
सितारो वाली,