द्वापरयुग में श्रीकृष्ण के जन्म के साथ ही कंस का बुरा दौर शुरू हो गया था। जब से उसे पता चला था कि देवकी का आठवां लाल उसका काल है, उसने उसे मिटाने की कसम खा ली थी। लेकिन जगत के पालनकर्ता का कोई क्या बिगाड़ सकता है। इस बात से अनजान अपने अहंकार में चूर कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के कई प्रयास किए। लेकिन हर बार विफल रहा। उसने अपनी बहन पूतना, कामासुर, शकटासुर और तृणावर्त जैसे राक्षसों को कान्हा को मारने भेजा। जिन्हें भगवान के हाथों मुक्ति मिली। लेकिन कंस फिर भी समझ नहीं पा रहा था।
भक्त वत्सल की जन्माष्टमी स्पेशल सीरीज ‘श्रीकृष्ण लीला’ के तेरहवें एपिसोड में आज हम आपको वत्सासुर, बकासुर और अघासुर के वध की कथा बताएंगे…
एक बार भगवान श्रीकृष्ण गाय और बछड़ों को लेकर वन में चराने गए। तब वो देखते हैं कि उनके बछड़ों के बीच एक बहुत ही अद्भुत बछड़ा भी चर रहा है। जो थोड़ा अलग है और किसी भी ग्वाले का नहीं है। भगवान ने उसे पहचान लिया और उसके करीब पहुंच गए। भगवान को पास आते देख कंस के भेजे मायावी वत्सासुर ने भगवान कृष्ण पर हमला कर दिया। भगवान और वत्सासुर का भीषण युद्ध हुआ जिसमें भगवान ने उसकी पूछ पकड़ी और हवा में घूमाते हुए उसे पत्थर पर पटक दिया। इस तरह कंस का एक और राक्षस भगवान के हाथों मुक्ति पा गया।
कंस हमेशा ही कान्हा को मारने की कोशिश करता रहा। इस बार भगवान को मारने कंस के कहने पर बकासुर आया। बकासुर छुपकर जंगल में कृष्ण और ग्वालों का रास्ता देख रहा था। जब सभी ग्वाले बाल श्रीकृष्ण के साथ वन में खेलने आए तो उसने अपने पंखो से भयानक आंधी पैदा की। इस आंधी से सभी डर गए। इसी बीच बकासुर ने भगवान कृष्ण को अपनी चोंच में दबाकर निगल लिया। लेकिन निगलते ही उसे गले में असहनीय जलन होने लगी। इस कारण उसने भगवान को बाहर निकाल दिया। बाहर आते ही भगवान ने उसकी चोंच पकड़ी और चीर दी। इस तरह बकासुर का भी वध हो गया।
बकासुर के बाद कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अघासुर को भेजा। पूतना और बकासुर के भाई अघासुर से देवता भी डरते थे। उसने एक दिन बहुत बड़े अजगर का रूप धारण कर खुद को अदृश्य कर लिया। अघासुर वृन्दावन पहुंचकर अपना मुंह खोल कर वहां बैठ गया जहां कन्हैया ग्वालों के साथ खेलने आने वाले थे। खेलते हुए भगवान समेत सारे ग्वाल बाल उसके मुंह में समा गए। अघासुर ने तभी अपना मुंह बंद कर लिया। अब ग्वाल बाल घबरा गए। लेकिन तभी भक्त वत्सल भगवान ने अपना शरीर विशाल बना लिया। अपनी बांसुरी से अघासुर के शरीर को चीरकर बाहर आ गए और सभी को बचा लिया। इस तरह अघासुर के भी प्राण निकल गए और उसे मुक्ति मिल गई।
नरक चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है।
धनतेरस पर विभिन्न वस्तुओं की खरीदी का रिवाज है। इस शुभ दिन पर खरीदारी करने की परंपरा धनतेरस की पौराणिक मान्यता के साथ ही आरंभ हुई है।
छोटी दिवाली अमावस्या के एक दिन पहले यानी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है।
दिवाली से ठीक एक दिन पहले यानी 30 अक्टूबर को छोटी दिवाली मनाई जाएगी। जिसे नरक चतुर्दशी, यम दिवाली, काली चौदस या रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है।