नवरात्रों की आई है बहार,
जयकारे गूंजे मैया के,
होगा शेरावाली का दीदार,
जयकारे गूंजे मैया के,
नवरात्रो की आई है बहार,
जयकारे गूंजे मैया के ॥
माँ का भवन सजाया,
फूलों कलियों से महकाया,
हुआ आँगन पवित्तर,
माँ ने करम कमाया,
ज्योत मैया की जगा के,
सबने मिरदंग बजाके,
सब भक्तो ने गाके,
खूब रंग बरसाया,
सपने हुए साकार,
नवरात्रो की आई है बहार,
जयकारे गूंजे मैया के ॥
रूप कंजको का धार,
आती घर घर माता,
खोले मन की जो आँखे,
वो ही दर्शन पाता,
सच्चे भाव से जो कोई,
पूरी हलवा खिलाता,
पूरी करती मुरादे,
सारे जग की विधाता,
करती है बेडा पार,
नवरात्रो की आई है बहार,
जयकारे गूंजे मैया के ॥
नवरात्रों की आई है बहार,
जयकारे गूंजे मैया के,
होगा शेरावाली का दीदार,
जयकारे गूंजे मैया के,
नवरात्रो की आई है बहार,
जयकारे गूंजे मैया के ॥
जय राधे, जय कृष्ण, जय वृंदावन । श्री गोविंदा, गोपीनाथ, मदन-मोहन ॥
जीमो जीमो साँवरिया थे,
आओ भोग लगाओ जी,
प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को किया जाता है, जो भगवान शिव को समर्पित तिथि है। इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष के प्रदोष व्रत का वर्णन और महत्व धार्मिक ग्रंथों और पंचांग में बताया गया है।
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। दरअसल, यह व्रत देवाधिदेव महादेव शिव को ही समर्पित है। प्रदोष व्रत हर माह में दो बार, शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।