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मोहे तो लगन, मेरे खाटू धाम की(Mohe to Lagan Mere Khatu Dham Ki)

मोहे तो लगन, मेरे खाटू धाम की(Mohe to Lagan Mere Khatu Dham Ki)

ना मैं जाऊं मथुरा काशी,

मेरी इच्छा ना ज़रा सा,

मोहे चाह नहीं,

अब किसी धाम की,

मोहे तो लगन,

मेरे खाटू धाम की,

मोहें तो लगन,

मेरे खाटू धाम की ॥


कष्टों ने घेरा मुझे,

मिला ना सहारा,

हाथ बढ़ाया तूने,

कष्टों से तारा,

तेरे सिवा दुनिया में,

कोई ना हमारा,

मुझ पे सदा ही रहे,

हाथ तुम्हारा,

अब कोई ये बताये,

हम चाहे तो क्या चाहे,

हमें चाह नहीं,

अब किसी काम की,

मोहें तो लगन,

मेरे खाटू धाम की ॥


कुछ नहीं मांगू मैं अब,

किसी और धाम से,

सब कुछ मिला है मुझे,

बाबा तेरे नाम से,

डरता नहीं मैं अब,

किसी अंजाम से,

मुझको पता है अब,

जियूँगा आराम से,

रहूं चरणों के पास,

सदा यही अरदास,

मोहे सुध ही ना रहे,

अब सुबह शाम की,

मोहें तो लगन,

मेरे खाटू धाम की ॥


फागुन का मेला आया,

मन नहीं माना,

हाथ में निशान लेके,

चल पड़ा दीवाना,

चंग नगाड़ा बाजे,

नाचू मैं धमाल में,

भक्तों के संग नाचू,

गाऊं झूमूँ ताल में,

मेरा बाबा है कमाल,

खुश रखता है अपने लाल,

होली खेलेंगे हम,

बाबा तेरे धाम की,

मोहें तो लगन,

मेरे खाटू धाम की ॥


ना मैं जाऊं मथुरा काशी,

मेरी इच्छा ना ज़रा सा,

मोहे चाह नहीं,

अब किसी धाम की,

मोहे तो लगन,

मेरे खाटू धाम की,

मोहें तो लगन,

मेरे खाटू धाम की ॥

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भीष्म अष्टमी की कथा-महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी भीष्म पितामह ने अपने इच्छामृत्यु के वरदान के कारण तत्काल देह त्याग नहीं किया।

भीष्म अष्टमी पर करें गंगा स्नान

भीष्म अष्टमी सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह दिन विशेष रूप से पितरों को समर्पित होता है, खासकर उन लोगों के लिए जिनके वंश में संतान नहीं होती। यह पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।

गुप्त नवरात्रि में देवी पूजा कैसे करें

यूं तो नवरात्रि पूरे साल मे 4 बार आती है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो नवरात्रि माघ और आषाढ़ के समय मनाई जाती है। जिन्हें गुप्त नवरात्रि के रूप मे जाना जाता है।

मासिक दुर्गाष्टमी तिथि और शुभ-मुहूर्त

प्रत्येक महीने की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। धार्मिक मत है कि जगत की देवी मां दुर्गा के चरण और शरण में रहने से साधक को सभी प्रकार के सुखों मिलते हैं।

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