देव है ये भोले भक्तो का,
खुद भी भोला भाला,
मेरा डमरू वाला,
मेरा डमरू वाला,
शमशानों में भूतो के संग,
इसने डेरा डाला,
मेरा डमरू वाला,
मेरा डमरू वाला ॥
सागर का हुआ जब मंथन,
तब देव असुर सब आए,
सबको था अमृत पीना,
कोई विष ना पीना चाहे,
छोड़ के अमृत शिव शंकर ने,
सारा विष पी डाला,
मेरा डमरू वाला,
मेरा डमरू वाला ॥
तपकर के भागीरथ ने,
गंगा धरती पे उतारी,
कोई रोक ना पाया उसको,
धारा में वेग था भारी,
बांध के अपनी जटा में उसको,
अनहोनी को टाला,
मेरा डमरू वाला,
मेरा डमरू वाला ॥
सावन के महीने में जब,
कावड़ियों की निकले टोली,
हर गली गली में गूंजे,
इसके ही नाम की बोली,
कोई बम बम बोल पुकारे,
कोई कहे बम भोला,
मेरा डमरू वाला,
मेरा डमरू वाला ॥
मेवा मिष्ठानो के हो,
या थाल भरे हो फल के,
भोले तो खुश होते है,
लुटिया भर गंगाजल से,
बेल पत्र और आक धतूरा,
और भंगिया पिने वाला,
मेरा डमरू वाला,
मेरा डमरू वाला ॥
देव है ये भोले भक्तो का,
खुद भी भोला भाला,
मेरा डमरू वाला,
मेरा डमरू वाला,
शमशानों में भूतो के संग,
इसने डेरा डाला,
मेरा डमरू वाला,
मेरा डमरू वाला ॥
हिंदू धर्म में गंगा सप्तमी ‘जिसे गंगा जयंती भी कहा जाता है’ एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत में श्रद्धा और भाव के साथ मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में गंगा नदी को केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक देवी के रूप में पूजा जाता है। मां गंगा को मोक्षदायिनी, पाप विनाशिनी और पुण्य प्रदान करने वाली माना गया है।
गंगा सप्तमी, जिसे गंगा जयंती या जाह्नवी सप्तमी भी कहा जाता है, इसे हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र पर्व माना जाता है। यह दिन मां गंगा के पुनः प्रकट होने की कथा से जुड़ा हुआ है, जब ऋषि जाह्नु ने मां गंगा को अपने कान से पुनः प्रकट किया था।
हिंदू पंचांग के अनुसार, गंगा सप्तमी का पर्व वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं।