हिंदू पंचांग के अनुसार, गंगा सप्तमी का पर्व वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं। इस साल गंगा सप्तमी 3 मई, शनिवार को मनाई जाएगी, जो विशेष रूप से शुभ मानी जा रही है क्योंकि इस दिन त्रिपुष्कर योग, शिववास योग और रवि योग जैसे तीन अत्यंत शुभ योगों का संयोग बन रहा है।
त्रिपुष्कर योग एक दुर्लभ और शुभ योग है जो तीन विशेष नक्षत्रों जैसे ‘विशाखा, पुनर्वसु और मूल’ के मिलन से बनता है। इस योग में किया गया कार्य तीन गुना फलदायी माना जाता है। साथ ही, इस योग में धार्मिक कार्य, पूजन, स्नान और दान करना विशेष लाभकारी होता है। यदि कोई शुभ कार्य इस समय किया जाए तो वह भी स्थायी और तीन गुना फलदायक होता है।
शिववास योग शिवजी की उपस्थिति और कृपा का प्रतीक होता है। जब यह योग बनता है, तो ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव स्वयं पृथ्वी पर वास करते हैं। इस योग में की गई साधना, उपवास, और दान का फल अनेक गुना बढ़ जाता है। गंगा सप्तमी जैसे पावन पर्व पर शिववास योग का होना इस दिन को और भी पुण्यदायी बना देता है।
रवि योग सूर्य देव के प्रभाव से बनने वाला शुभ योग है। यह योग सभी अमंगल प्रभावों को समाप्त करता है और इस योग में किए गए कार्य विघ्नरहित पूरे होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रवि योग में की गई पूजा, तपस्या और दान से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, गंगा सप्तमी के दिन स्नान और दान का शुभ मुहूर्त 3 मई को सुबह 10:58 बजे से दोपहर 01:38 बजे तक रहेगा। इस समय में गंगा स्नान, दान-पुण्य, और पूजा-अर्चना करना अत्यंत शुभ माना जा रहा है।
प्राचीन काल से ही हिंदुओं के घर आंगन में तुलसी का पौधा उगाया जाता है। तुलसी का आयुर्वेदिक और धार्मिक महत्व हमारे वेदों पुराणों में वर्णित है। तुलसी भगवान विष्णु को अति प्रिय है।
कुंभ मेला सनातन धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक जैसे पवित्र स्थलों पर आयोजित होता है।
महाकुंभ सनातन धर्म का सबसे पवित्र और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन में से एक है। प्रत्येक 12 साल में महाकुंभ का आयोजन भारत के चार पवित्र स्थलों हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में किया जाता है।
हिन्दू धर्म में कुल 33 करोड़ देवी-देवता की पूजा अर्चना का विधान है। कुछ ग्रंथों में इस संख्या को तैंतीस प्रकार के देवताओं के रूप में पारिभाषित किया गया है।