भजहु रे मन श्री नंद नंदन
अभय-चरणार्विन्द रे
दुर्लभ मानव-जन्म सत-संगे
तारो ए भव-सिंधु रे
भजहु रे मन श्री नंद नंदन
अभय-चरणार्विन्द रे
शीत तप बात बरिशन
ए दिन जामिन जगी रे
बिफले सेविनु कृपन दुरजन
चपल सुख लभ लागी रे
भजहु रे मन श्री नंद नंदन
अभय-चरणार्विन्द रे
ए धन यौवन पुत्र परिजन
इथे की आचे पारतित रे
कमल-दल-जल, जीवन तलमल
भजू हरि-पद नीत रे
भजहु रे मन श्री नंद नंदन
अभय-चरणार्विन्द रे
श्रवण कीर्तन स्मरण वंदन
पद सेवन दास्य रे
पूजन, सखी-जन, आत्म-निवेदन
गोविंद-दास-अभिलाषा रे
भजहु रे मन श्री नंद नंदन
अभय-चरणार्विन्द रे
दुर्लभ मानव-जन्म सत-संगे
तारो ए भव-सिंधु रे
मुरली बजा के मोहना, क्यों कर लिया किनारा।
अपनों से हाय कैसा, व्यवहार है तुम्हारा॥
मुरली वाले ने घेर लयी
अकेली पनिया गयी ॥
मूषक सवारी लेके,
आना गणराजा,
मुश्किल करे आसान जो,
वो नाम तो हनुमान है,