Logo

कूर्म अवतार (Koorm Avataar)

कूर्म अवतार (Koorm Avataar)

समुद्र मंथन के लिए हुआ भगवान का कच्छप अवतार, देवों को अमरत्व देने के लिए पीठ पर धारण किया मंदरांचल पर्वत 


भगवान विष्णु ने जग कल्याण के लिए कई अवतार लिए हैं, इस दौरान वे जीव-जंतु से लेकर मानव और नरसिंह जैसे अवतारों में धरती पर अवतरित हुए। इन्हीं में एक प्रमुख अवतार है कच्छप अवतार। इस अवतार में भगवान ने कछुए के रुप में आकर देवताओं समेत सारे संसार की रक्षा की और समुद्र मंथन में अहम भागीदारी निभाई। कच्छप अवतार का मुख्य उद्देश्य समुद्र मंथन में देवताओं और दानवों की सहायता करना था।  नरसिंह पुराण में कूर्मावतार को भगवान विष्णु का दूसरा अवतार कहा गया हैं, जबकि भागवत महापुराण के अनुसार ये विष्णुजी का ग्यारहवां अवतार हैं। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की सारी कथा ……


जब भगवान ने अपनी पीठ पर उठा लिया था मंदराचल पर्वत


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान का ये अवतार समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। कहा जाता है कि  एक बार जब महर्षि दुर्वासा ने इंद्र को पारिजात पुष्प की माला भेंट की तो अहंकार से भरे हुए देवराज इन्द्र ने वो माला सीधे अपने वाहन ऐरावत हाथी के गले में डाल दी। इस बात पर महर्षि दुर्वासा बहुत क्रोधित हुए और उन्होने इंद्र के साथ सभी देवताओं को शक्तिहीन और श्रीहीन होने का श्राप दे दिया। मुनि के श्राप से देवलोक की सुख-समृद्धि नष्ट हो गई और लक्ष्मी सागर की गहराई में जाकर बैठ गई। इससे इंद्रलोक ही नहीं सुर-असुर लोक और संसार का धन वैभव खत्म होने लगा। अपनी गलती का एहसास होने पर अहंकार को त्याग कर इन्द्र सहित सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की स्तुति की। 


तब भगवान ने देवताओं और दानवों को एक साथ समुद्र मंथन करने का आदेश दिया। विष्णु जी की आज्ञा से राक्षस और देवता एक हुए और समुद्र मंथन के लिए तैयार भी हो गए। मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी (वह उपकरण जिससे समुद्र को मथा जा सके) और शेषनाग वासुकि को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया। लेकिन जैसे ही मंदराचल पर्वत को समुद्र में डालकर घुमाने या मथने का काम शुरु हुआ तो वे जमीन(समुद्र की सतह) में धंसने लगा। उसके निचे किसी भी प्रकार का आधार नहीं था जो पर्वत को डूबने से रोक सके। इस बात से परेशान होकर सभी देव और दानव विष्णु जी के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या के समाधान का आग्रह किया। देव-दानवों के आग्रह पर श्रीहरि विष्णु ने एक विशालकाय कछुए का रुप धारण किया और अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत को उठा लिया। ऐसी मान्यता है कि कछुए की पीठ पर चिकनाई होती है जिस वजह से पर्वत आसानी से घूमने लगा और इस तरह समुद्र मंथन का कार्य पूरा हो सका।


शतपथ ब्राह्मण, महाभारत, पद्म पुराण, लिंग पुराण, कूर्म पुराण में भगवान विष्णु के कच्छपावतार का वर्णन है। इन सभी ग्रंथों में जीवन के चार लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के लिए भगवान की भक्ति और विभिन्न अवतारों के उद्देश्यों के बारे में विस्तार से बताया गया है। भगवान ने जिस दिन कूर्म अवतार धारण किया था उसे आज हम सभी लोग कूर्म जयंती के रूप में मनाते हैं और कूर्म जयंती को बहुत ही शुभ और सफल महूर्त के तौर पर माना जाता है। कूर्म जयंती पर निर्माण संबंधी कार्य शुरू करना बेहद शुभ होता है। यह दिन वास्तू दोष के निवारण के लिए भी बहुत उत्तम बताया गया है। कूर्म जयंती के दिन घर में चांदी या धातु से बना कछुआ लाना शुभ माना गया है।


समुद्र मंथन में मिलें थे यह चौदह रत्न


देव और दानवों के द्वारा किए गए समुद्र मंथन से कई सारे बहुमूल्य पदार्थ प्राप्त हुए थे। इनमें से सबसे प्रमुख है चौदह रत्न, इन चौदह रत्नों में सबसे पहले एक विष का प्याला निकला था जिसे भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया। विष को अपने कंठ में धारण करने से भगवान शिव का एक नाम नीलकंठ भी हुआ। विष के अलावा समुद्र मंथन में कामधेनु गाय, उच्चै:श्रवा नाम का घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, वारुणी मदिरा, चंद्रमा,  पारिजात वृक्ष, पांचजन्य शंख, देवी लक्ष्मी के अलावा धन्वन्तरि देव प्रकट हुए थे जिनके हाथ में अमृत का कलश था। अमृत को लेकर देव और दानवों में युद्ध भी होने लगा था जिसे रोकने के लिए भगवान विष्णु ने तुरंत ही मोहिनी का अवतार धारण किया और अमृत को देवताओं में बांटकर उन्हें अमरतत्व प्रदान किया। 


........................................................................................................
जल जाये जिह्वा पापिनी, राम के बिना (Jal Jaaye Jihwa Papini, Ram Ke Bina)

राम बिना नर ऐसे जैसे,
अश्व लगाम बिना ।

जम्मू में माँ मात वैष्णो, कलकत्ते में काली (Jammu Mein Maa Maat Vaishno Kalkatte Mein Kali)

जम्मू में माँ मात वैष्णो,
कलकत्ते में काली,

जब तें रामु ब्याहि घर आए(Jab Te Ram Bhayai Ghar Aaye)

श्री गुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।

जन मानस में गुंज रहा है, जय श्री राम (Jan Manas Mein Goonj Raha Hai Jai Shri Ram)

जन मानस में गूंज रहा है,
जय श्री राम जय श्री राम,

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang