देवों के देव महादेव यानी भगवान शिव के कई रूप और अवतार हैं। उनके संहारक स्वरूप को रुद्र कहा जाता है जिसका अर्थ है दुखों को हरने वाला। महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव के 11 रुद्र अवतारों की पूजा का विशेष महत्व है। रुद्र के 11 अवतारों की कथा वेदों-पुराणों में वर्णित है। ये 11 रुद्र अवतार भगवान शिव की शक्ति और महिमा का प्रतीक हैं। भगवान शिव का नाम रुद्र उनकी शक्ति और क्षमता को दर्शाता है। वे रुद्र अर्थात दुख, समस्या और अज्ञान का विनाश करने वाले हैं। उनकी महिमा और शक्ति इतनी व्यापक है कि वे बुराई और अन्य नकारात्मकताओं का भी नाश कर देते हैं।
भगवान शिव के 11 रुद्रांश भी हैं, जो एक ही महारुद्र अर्थात महादेव में समाए हुए हैं। यह दर्शाता है कि भगवान शिव की शक्ति और महिमा एक ही स्रोत से उत्पन्न होती है और वे अपने भक्तों की सभी समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हैं। आइए जानते हैं इन 11 रुद्र अवतारों के नाम और महाशिवरात्रि पर इनकी पूजा के महत्व को।
महाशिवरात्रि पर 11 रुद्र अवतारों की पूजा का विशेष महत्व है। यह पूजा भगवान शिव के विभिन्न रूपों को समर्पित है जो विभिन्न प्रकार की शक्तियों और गुणों का प्रतीक हैं। महाशिवरात्रि के दिन 11 रुद्र अवतारों की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं। यह पूजा करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है। इसके अलावा-
पौराणिक कथाओं में रुद्र को एक शक्तिशाली और महत्वपूर्ण वैदिक देवता के रूप में वर्णित किया गया है, जिन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है। रुद्र को अक्सर "विध्वंसक" या "उग्रएक" के रूप में जाना जाता है, जो तूफान, हवा, और विनाश से जुड़े होते हैं। रुद्र को दहाड़ के भगवान के रूप में भी जाना जाता है जिनकी तीन आंखें और चार भुजाएं होती हैं। वे रुद्र की मालाओं से सजे होते हैं और कश्यप के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुए एकादश रुद्र महान बल और पराक्रम से सम्पन्न होते हैं। इन एकादश रुद्रों ने संग्राम में दैत्यों का संहार कर इंद्र को पुनः स्वर्ग का अधिपति बना दिया। ये शिव रूपधारी एकादश रुद्र देवताओं की रक्षा के लिए स्वर्ग में विराजमान हैं। भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार इस प्रकार है-
प्रयागराज में आयोजित हो रहा महाकुंभ इन दिनों सभी का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। यहां दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर पवित्र स्नान के लिए एकत्रित हुए हैं।
महाकुंभ के अमृत स्नान की शुरुआत हो चुकी है। बता दें कि 13 जनवरी से 26 फरवरी तक यह भव्य महाकुंभ चलेगा। धार्मिक मान्यता है कि 144 सालों बाद इस तरह का शुभ योग इस बार के महाकुंभ में बना है।
महाकुंभ का पहला अमृत स्नान पुष्य और पुनर्वसु नक्षत्र में आरंभ हो चुका है। प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी के पूजन के उपरांत नागा साधु शिव के स्वरूप में खुद को सजा चुके हैं।
13 जनवरी से शुरू हुए महाकुंभ में इस बार कई अनोखी चीजें देखने को मिल रही हैं। संगम नगरी प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ में देश-विदेश से हजारों संत पहुंचे हैं। बता दें कि इस बार के महाकुंभ में ऐसी कई चीजें लोगों को पहली बार देखने को मिली हैं।