Logo

कुंभ के बाद कहां चले जाते हैं नागा साधु?

कुंभ के बाद कहां चले जाते हैं नागा साधु?

कुंभ का मुख्य आकर्षण माने जाने वाले नागा मेला खत्म होते ही इन रहस्यमयी स्थानों पर लौट जाते हैं 


कुंभ मेला हिंदू धर्म के सबसे बड़े समागमों में से एक है। यह एक ऐसी परंपरा है, जिसके केंद्र में नागा साधु रहते हैं। बिना कपड़ों के रहने वाले ये साधु अपनी कठोर तपस्या, धार्मिक जीवनशैली, और रहस्यमयी जीवन के लिए भी जाने जाते हैं। सिर्फ कुंभ में ही इनकी भव्य उपस्थिति देखने को मिलती है। यह उनके लिए एक प्रमुख अवसर होता है, जहां वे धर्म के प्रचार-प्रसार और विशाल स्नान अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। इसके बाद वे अपनी तपस्या के लिए वापस लौट जाते हैं। ऐसे में बहुत से लोगों के मन में ये जानने की उत्सुकता होती है कि कुंभ के बाद नागा साधु कहां चले जाते है। तो चलिए आपकी उत्सुकता को खत्म करते हुए आपको बताते हैं कि कुंभ के बाद नागा साधु कहां चले जाते हैं।  


कुंभ के बाद नागा साधुओं की यात्रा 


1. हिमालय की गुफाएं


कुंभ मेले के ज्यादातर नागा साधु हिमालय की गुफाओं में चले जाते हैं, जहां वे कठोर तप करते हैं। इस दौरान वे सिर्फ फल और पानी पर ही जीवन व्यतीत करते हैं। इन स्थानों पर उनका जीवन बाहरी दुनिया से पूरी तरह अलग और ध्यानमय होता है। कुछ साधु घने जंगलों में भी जाकर तप करते हैं, जहां वे बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट जाते हैं।



2. अखाड़ों में लौट जाते हैं नागा साधु 


ज्यादातर नागा साधु किसी न किसी अखाड़े से जुड़े होते है. यहां उनके लिए शिक्षण और प्रशिक्षण का बड़ा केंद्र होता है। इसलिए कुंभ मेले के बाद वे यहां वापस लौट जाते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों, योग, और ध्यान में लग जाते हैं। अखाड़े नागा साधुओं के लिए गुरु शिक्षा परंपरा के तहत ज्ञान प्राप्त करना का केंद्र होता हैं।


3. तीर्थ स्थलों की यात्रा


कई नागा साधुओं को खुले वातावरण में रहना पसंद होता है। इसलिए वे कुंभ के बाद तीर्थ स्थलों की यात्रा पर निकल जाते हैं। वे गंगा, यमुना, और अन्य पवित्र नदियों के किनारे तपस्या करते हैं। इस दौरान वे लोगों को धर्म, अध्यात्म, और नैतिक मूल्यों की शिक्षा देते हैं।



नागा साधुओं का सांसारिक सुख से कोई लेना देना नहीं होता है। उनका जीवन वैराग्य , तप, त्याग, और आध्यात्मिक अनुशासन पर आधारित है। कुंभ मेला उनके लिए केवल एक पड़ाव है, जहां वे अपने आध्यात्मिक अनुभवों को साझा करते हैं। इसके बाद उनका ध्यान फिर से अपनी साधना पर केंद्रित हो जाता है। और यहीं रहस्यमयी पक्ष ही उन्हें सामान्य साधुओं से अलग बनाता है।


........................................................................................................
ओढ़ चुनरियाँ मैया लाल चली (Odh Chunariya Maiya Lal Chali)

ओढ़ चुनरियाँ मैया लाल चली,
सिंघ सवारी पे है लगती भली ॥

राधे कृष्ण की ज्योति अलोकिक(Radhe Krishna Ki Jyoti Alokik)

राधे कृष्ण की ज्योति अलोकिक,
तीनों लोक में छाये रही है ।

राधे पूछ रही तुलसा से(Radhe Pooch Rahi Tulsa Se)

राधे पूछ रही तुलसा से,
तुलसा कहाँ तेरा ससुराल ।

राधे राधे जपा करो(Radhe Radhe Japa Karo)

राधे राधे जपा करो,
कृष्ण नाम रस पिया करो,

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang