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कपिल अवतार (Kapil Avataar)

कपिल अवतार (Kapil Avataar)
भगवान विष्णु के पांचवें अवतार की आराधना हम कपिल मुनि के रूप में करते हैं। यह अवतार विष्णु जी के 24 अवतारों में से प्रमुख है, जिसे अग्नि का अवतार भी कहा जाता है। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र कपिल मुनि सनातन धर्म के संरक्षण के लिए धरती पर अवतरित हुए थे और अपने इस अवतार में उन्होंने सांख्य दर्शन और कपिल गीता जैसी कई रचनाएं लिखकर मानव को जीवन जीने की कलाएं सिखाईं।

कपिल मुनी के जन्म की कथा


सतयुग में कर्दम ऋषि की कठिन तपस्या की और विवाह पूर्व किए गए इस तपस्चर्य से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने स्वयं कपिलमुनि के रूप में कर्दम ऋषि के पुत्र के रूप में जन्म लिया। कपिल मुनि की माता का नाम संसार के प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु की पुत्री देवहूति थी। तो आइए "भक्त वत्सल' के इस लेख में जानते हैं भगवान विष्णु के पांचवें अवतार कपिल मुनि के बारे में।

ब्रह्मा जी के पुत्र कर्दम ऋषि ब्रह्मचारी थे लेकिन ब्रह्मा जी के आदेश से सृष्टि का कार्य आगे बढ़ाने के लिए कर्दम ऋषि ने गृहस्थाश्रम अपनाया। गृहस्थाश्रम अपनाने से पहले उन्होंने स्वयं की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने के लिए सरस्वती नदी के किनारे दस हजार वर्षों तक घोर तपस्या की और भगवान से ऐसी पत्नी का वरदान मांगा जो गृहस्थाश्रम और भगवान की आराधना दोनों में सहयोग करने वाली हो। तब भगवान ने उन्हें स्वायंभु मनु की पुत्री से विवाह करने की आज्ञा दी और स्वयं पुत्र बनकर मुनि का कल्याण करने का वरदान दिया। भगवान के वरदान के अनुसार कर्दम ऋषि की पत्नी देवहूति के गर्भ से भगवान कपिल का जन्म हुआ। कपिल मुनि की नौ बहने भी हैं जिनके नाम कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुंधती तथा शान्ति है। इनके जन्म के बाद ब्रह्म देव की आज्ञा पाकर कर्दम ऋषि ने संन्यास धारण कर लिया। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रूप में ब्रह्म देव की छाया से जन्मे कर्दम ऋषि की बेटियों कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुंधती तथा शान्ति का विवाह क्रमश: मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, भृगु, वसिष्ठ तथा अथर्वा ऋषियों से हुआ था।

क्या होता है सांख्य दर्शन?


कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं। वैसे तो सांख्य दर्शन की परिभाषा बहुत जटिल है लेकिन सरल भाषा में सांख्य दर्शन का अर्थ होता है गिनती या संख्या के अनुसार दर्शन की दृष्टि। यह दर्शन शास्त्र की छह प्रणालियों में से एक। इसके अनुसार मानव शरीर के दो अस्तित्व है। पहले लौकिक और दूसरा सूक्ष्म शरीर। दर्शन किस प्रणाली के अनुसार जब पहला शरीर नष्ट हो जाता है तो दूसरा देवीय शक्तियों में समाहित हो जाता है। सूक्ष्म शरीर चार तत्वों बुद्धि अहंकार मन और प्राण से मिलकर बना होता है। 

कपिल मुनि के बारे में और भी जानकारी


  • महाभारत काल में जब भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर अपने अंतिम समय का इंतजार कर रहे थे तब भगवान कपिल उन्हें दर्शन देने पहुंचे थे। 
  • महाभारत में कपिल मुनि का उपदेश कपिल गीता के नाम से अंकित है।
  • राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को कपिल मुनि ने अपनी क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया था।
  • भागवत धर्म के प्रमुख बारह आचार्यों में भगवान कपिल मुनि का प्रमुख स्थान है।
  • भगवान कपिल प्रत्येक कल्प की शुरुआत में जन्म लेते हैं।
  • कपिल मुनि के नाम पर कपिलवस्तु नामक नगर बसा है जहां गौतम बुद्ध ने जन्म लिया। कपिल मुनि ने गंगासागर में तपस्या की थी ।
  • कपिल मुनि का आश्रम सरस्वती नदी के तट पर बिंदु सरोवर में है जो द्वापर से लेकर आज तक एक पवित्र तीर्थ धाम है।
  • रामावतार और कृष्णावतार की कथाओं में मौजूद बिंदु सरोवर गुजरात के सबसे बड़े शहर अहमदाबाद  से 130 किलोमीटर दूर सिद्धपूर में हैं।
  • कपिल मुनि ने  'सांख्य सूत्र', 'तत्व समास', 'व्यास प्रभाकर', 'कपिल गीता', 'कपिल पंचराम', 'कपिल स्तोभ' और 'कपिल स्मृति' जैसे महान ग्रंथों की रचना की है।
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कल्पवास क्या होता है?

प्रयागराज में 13 जनवरी से कुंभ मेले की शुरुआत होने जा रही है। यह हिंदू धर्म का सबसे बड़ा समागम है, जिसमें लाखों हिंदू श्रद्धा की डुबकी लगाते हैं।

कल्पवास की पौराणिक कथाएं

प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारियां पूरी कर ली गई है। 12 जनवरी से इसकी शुरुआत होने जा रही है। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग कल्पवास के लिए प्रयागराज पहुंचेंगे और माघ का महीना गंगा किनारे बिताएंगे।

क्या महिलाएं कर सकती हैं कल्पवास

हिंदू धर्म में कल्पवास की परंपरा मोक्ष और शांति का साधन है। यह माघ महीने में गंगा, यमुना , सरस्वती के संगम पर संयमित जीवन जीने की परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है।

भगवान को भोग क्यों लगाया जाता है?

सनातन धर्म में पूजा-पाठ के दौरान या फिर भोजन करने से पहले भगवान को भोग लगाने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि भगवान को दिल से जो भी खिलाया जाए, तो वह उतने ही प्यार से उसे ग्रहण करते हैं।

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