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मत्स्य अवतार (Matsya Avtaar)

मत्स्य अवतार (Matsya Avtaar)

वेदों की रक्षा करने श्री हरि ने धारण किया था मत्स्य रुप,  जानें दशावतार के पहले अवतार की संपूर्ण कहानी


भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार वेदों को बचाने और और प्रलय के बाद संसार को फिर से बसाने के लिए लिया था। प्रलय काल में भगवान विष्णु के इस प्रथम अवतार को मत्स्य अवतार कहा गया है क्योंकि इस अवतार में श्री हरि ने मछली का रूप धारण किया था। मत्स्य अवतार दशावतार का पहला अवतार था। जिसमें प्रभू ने जल में डूब रही धरती पर फिर से जीवन की स्थापित करते हुए वेदों की रक्षा की थी। मान्यता है कि इस अवतार में भगवान ने एक नाव को आधार बनाकर जीव मात्र की रक्षा की थी और प्रलय काल खत्म होन के बाद ब्रह्मदेव ने इसी नाव की मदद से पुन: जीवन का संचालन किया।


मत्स्य रूप में कैसे आएं भगवान?


यह बात कल्प के अंत से थोड़ा पहले कि है जब सत्यव्रत नाम का एक पुण्यात्मा राजा तपस्या कर रहा था। उदार हृदय, धार्मिक स्वभाव और प्रज्ञा पालन में लीन यह राजा एक दिन सूर्योदय के पश्चात कृतमाला नदी पर स्नान के लिए पहुंचा। स्नान के पश्चात जब राजा सत्यव्रत ने तर्पण के लिए अपनी अंजलि में जल भरा तो जल के साथ उसके हाथों में एक छोटी-सी मछली भी आ गई। सत्यव्रत ने मछली को फिर से नदी में छोड़ दिया। तब मछली ने राजा से कहा कि जल के बड़े-बड़े जीव मुझे मार देंगे आप मेरे जीवन की रक्षा कीजिए। दयालु प्रवृत्ति के राजा को मछली पर दया आ गई और वे उसे अपने महल ले आए और एक सुंदर पात्र में जल भरकर उसे महल में ही निवास दे दिया।


एक रात में ही दोगुना हो गया मछली का आकार


दूसरे दिन राजा जब सोकर उठे तो उन्होंने देखा कि रात भर में मछली का आकार उस पात्र की तुलना में बहुत अधिक बड़ा हो गया है। मछली ने सत्यव्रत से किसी बड़े स्थान की मांग की। राजा ने और बड़ा पात्र मंगवा दिया लेकिन थोड़े ही समय में यह भी छोटा पड़ने लगा। राजा ने मछली को सरोवर में रखवाया लेकिन मछली लगातार बढ़ती रही और उसके लिए वो सरोवर भी छोटा पड़ने लगा। फिर राजा ने मछली को समुद्र में रखने का विचार किया, लेकिन भगवान की माया से मछली इतनी विशालकाय हो गई कि समुद्र भी उसके लिए छोटा पड़ने लगा। यह देख सत्यव्रत ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की और कहा कि आप कौन हैं और मुझसे क्या चाहते हैं?


जब भगवान ने बताया मत्स्य अवतार का उद्देशय


राजा की बात सुनकर मत्स्य रूप में अवतरित हुए श्रीहरि विष्णु ने राजन को अपना परिचय देते हुए कहा, कि हयग्रीव नामक दैत्य वेदों को चुरा कर समुद्र में छुप गया है, और इसी कारण जगत में अज्ञान और अधर्म बढ़ गया है। आज से सातवें दिन मैं हयग्रीव का वध करुंगा और उसी समय पृथ्वी पर प्रलय आएगा। समुद्र में तूफान आएगा। जमकर भीषण बारिश होगी और संसार जलमग्न हो जाएगा। जहां तक नजर जाएगी पानी ही पानी होगा। ऐसे में तुम्हारे पास एक नाव आएगी। तुम उसमें संसार के सभी अनाजों और औषधियों के बीज रख लेना और सप्त ऋषियों को बिठा लेना। मैं अपने इसी मत्स्य अवतार में उस नाव को प्रलय से बचाकर ले जाऊंगा और तुम्हें मोक्ष का मार्ग बताउंगा। इतना कहकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गए। 


मत्स्य अवतार का उद्देशय पूरा हुआ


राजा सत्यव्रत तभी से सातवें दिन का इंतजार करने लगे और भगवान का नाम जपते हुए उनकी आज्ञा अनुसार तैयारी करने लगे। 7वें दिन प्रलय हुआ और धरती जल में डूबने लगी, तभी राजा के पास वो नाव आई जिसके बारे में भगवान ने जिक्र किया था। भगवान की आज्ञानुसार सत्यव्रत उसमें सभी अनाजों और औषधियों के बीज और सप्त ऋषियों को लेकर बैठ गए। नाव सागर में तैरने लगी। मत्स्य अवतार में भगवान ने सत्यव्रत और सप्त ऋषियों को दर्शन दिए तथा हयग्रीव का वध कर उससे वेद छीन लिए। भगवान ने वेद ब्रह्मा जी को सौंप दिए। ब्रह्मा जी ने प्रलय के बाद नाव में रखी सामग्री और अपने तपोबल से धरती पर पुनः जीवन की स्थापना की।  इस प्रकार भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर वेदों का उद्धार किया तथा सत्यव्रत को माध्यम बनाकर जगत में प्राणियों के कल्याण का कार्य संपन्न कर अपने पहले अवतार के उद्देश्य को पूरा किया।

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