हिंदू धर्म में साधु-संतों का बहुत महत्व होता है। यह आम लोगों को आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिए मार्गदर्शन देते हैं। साधु -संत भी कई प्रकार के होते हैं। अघोरी और नाग साधु उन्हीं का एक प्रकार है। अघोरी और नागा साधु दो ऐसे साधु संप्रदाय हैं, जो अपनी विशिष्ट जीवन शैली और साधना पद्धतियों के कारण हमेशा से चर्चा का विषय रहते हैं। देखने में दोनों साधु समुदाय एक जैसे लगते भी हैं। लेकिन नागा साधु और अघोरी साधु एक दूसरे से बेहद अलग होते हैं।पहनावे से लेकर इनके तप करने के तरीके, रहन-सहन, साधना, तपस्या और साधु बनने की प्रक्रिया में बहुत अंतर होता है। दोनों के आध्यात्मिक मार्ग और उद्देश्य भी अलग होते हैं। चलिए आपको दोनों साधु समुदायों के बीच का अंतर बताते है।
नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा, आध्यात्मिक उन्नति और सांसारिक इच्छाओं से मुक्ति पाना होता है। इसी के कारण वे तपस्वी जीवन जीते हुए अस्त्र रखते है और निर्वस्त्र रहते है , जिससे वे सांसारिक मोह से अपनी स्वतंत्रता का प्रदर्शन कर सके। वहीं अघोरी तंत्र मार्ग पर चलने वाले साधु होते है। जिनका उद्देश्य आत्मा को परमात्मा से मिलाने और संसार के भय और मृत्यु को समझना है।
नागा साधु ब्रह्मचर्य, संयम और कठोर तपस्या का पालन करते हैं। एक नागा साधु बनने के लिए ही 12 साल का कठिन तप करना होता है। ताकि वे सांसारिक जीवन से मुक्ति पा सके। वहीं अघोरी साधुओं की साधना तंत्र और तांत्रिक विधियों पर आधारित होती है। वे श्मशान में तप करते हैं और समाज के मानदंडों को तोड़ते हैं। उनकी साधना में ध्यान, तांत्रिक अनुष्ठान और चरम साधनाएं शामिल होती हैं।
नागा साधु अपने नाम की तरह निर्वस्त्र रहते है। वे अपना शरीर भभूत से ढकते हैं। उनके पास केवल लंगोट, त्रिशूल और अन्य धार्मिक वस्तुएं होती हैं। वहीं अघोरी जानवरों की खाल पहनते हैं या कभी-कभी नग्न रहते हैं। वे श्मशान की राख से अपने शरीर को ढकते हैं और मानव खोपड़ी का उपयोग पात्र के रूप में करते हैं।
नागा साधु सनातन परंपरा से जुड़े होते है। उनका जुड़ाव अखाड़ों से होता है। एक नागा साधु बनने के लिए गुरु दीक्षा लेनी पड़ती है। इस पड़ाव के बाद ही कोई नागा साधु बन सकता है। दूसरी तरफ अघोरी बनने के लिए कोई गुरू का निर्धारण नहीं करना पड़ता है। अघोरियों के गुरु स्वयं भगवान शिव होते हैं। उन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है।
हालांकि ऐसा कहा जाता है कि नागा साधु के दर्शन के बाद अघोरी बाबा के दर्शन करना भगवान शिव के दर्शन करना बराबर है।
भज राधे गोविंदा रे पगले,
भज राधे गोविंदा रे,
वैकुंठ चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। ये कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और शिव जी का पूजन एक साथ किया जाता है।
वैकुंठ चतुर्दशी हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इसे कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है। यह कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पहले आता है और देव दिवाली से भी संबंधित है।
हिंदू धर्म में वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आता है।