वट सावित्री व्रत 10 जून, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाएगा। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जिससे उनके पति की दीर्घायु और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहे। लेकिन इस व्रत की पूजा तभी पूर्ण मानी जाती है जब व्रत के साथ वट सावित्री व्रत कथा का पाठ भी किया जाता है। यह कथा व्रत की आत्मा मानी जाती है।
इस कथा में राजा अश्वपति और उनकी पत्नी मालवी की कहानी है। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए देवी सावित्री की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी सावित्री ने स्वयं उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया। सावित्री ने एक अल्पायु राजकुमार सत्यवान को अपना पति चुना। विवाह के बाद जब सत्यवान की मृत्यु का समय आया, तो सावित्री ने यमराज का मार्ग रोक लिया। अपने दृढ़ संकल्प, भक्ति और बुद्धि से उन्होंने यमराज को प्रसन्न किया और अपने पति के जीवन को पुनः प्राप्त कर लिया।
कर दो दुखियो का दुःख दूर,
ओ बाघम्बर वाले,
श्री राम जय राम
जय जय राम
काहे इतनी देर लगाई,
आजा रे हनुमान आजा,
कर किरपा तेरे गुण गाँवा,
नानक नाम जपत सुख पाँवा,