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वट सावित्री पूर्णिमा व्रत कथा

वट सावित्री पूर्णिमा व्रत कथा

Vat Savitri Purnima Vrat Katha: वट सावित्री पूर्णिमा व्रत पर करें इस कथा का पाठ, तभी पूजा मानी जाएगी पूरी 

वट सावित्री व्रत 10 जून, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाएगा। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जिससे उनके पति की दीर्घायु और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहे। लेकिन इस व्रत की पूजा तभी पूर्ण मानी जाती है जब व्रत के साथ वट सावित्री व्रत कथा का पाठ भी किया जाता है। यह कथा व्रत की आत्मा मानी जाती है।

पति के जीवन को पुनः किया था प्राप्त 

इस कथा में राजा अश्वपति और उनकी पत्नी मालवी की कहानी है। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए देवी सावित्री की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी सावित्री ने स्वयं उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया। सावित्री ने एक अल्पायु राजकुमार सत्यवान को अपना पति चुना। विवाह के बाद जब सत्यवान की मृत्यु का समय आया, तो सावित्री ने यमराज का मार्ग रोक लिया। अपने दृढ़ संकल्प, भक्ति और बुद्धि से उन्होंने यमराज को प्रसन्न किया और अपने पति के जीवन को पुनः प्राप्त कर लिया।

कथा का महत्व

  • यह व्रत मुख्य रूप से पति की लंबी उम्र की कामना के लिए किया जाता है। कथा के पाठ से यह संकल्प और भी सशक्त हो जाता है।
  • कथा का पाठ वैवाहिक जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य को बनाए रखने में मदद करता है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली बनी रहती है।

पुरोहित से सुनें कथा व्रत कथा

  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, व्रत की कथा किसी अनुभवी पंडित या पुरोहित से सुननी चाहिए।
  • यदि कोई पंडित उपलब्ध नहीं है या आप किसी अन्य समस्या का सामना कर रहे हैं, तो आप खुद भी यह कथा वट सावित्री व्रत की पुस्तक से पढ़ सकते हैं।
  • अगर कुछ भी संभव न हो तो, यूट्यूब या किसी धार्मिक ऐप पर भी यह कथा उपलब्ध होती है, जिससे आसानी से सुनी जा सकती है।
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