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सीता नवमी की व्रत कथा

सीता नवमी की व्रत कथा

सीता नवमी क्यों मनाई जाती है? यहां जानें पौराणिक व्रत कथा


सीता नवमी वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो माता सीता के प्राकट्य के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं। साथ ही माता सीता एवं भगवान श्री राम की पूजा करती हैं, जिससे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। इस पर्व का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह महिलाओं के लिए भी एक विशेष अवसर है, जो अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना करती हैं। सीता नवमी के दिन व्रत कथा का पाठ करना भी बहुत महत्वपूर्ण है, जिससे पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। ऐसे में आइये जानते हैं सीता नवमी की पौराणिक और व्रत कथा क्या है। 

सीता नवमी 2025 कब है?

साल 2025 में वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरूआत 5 मई, सोमवार को सुबह 7 बजकर 36 मिनट से होगी। जो अगले दिन 6 मई को सुबह 8 बजकर 39 मिनट तक जारी रहेगी। माता सीता का जन्म वैशाख शुक्ल नवमी, मंगलवार, पुष्य-नक्षत्र, कालीन तथा मध्याह्न के समय हुआ था। क्योंकि, 6 मई के दिन यह मध्याह्न व्यापिनी नहीं है। ऐसे में 5 मई के दिन ही सीता नवमी मनाई जाएगी और इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा।

सीता नवमी की पौराणिक कथा 

रामायण के अनुसार, मिथिला में एक समय लंबे समय तक वर्षा न होने के कारण सूखा पड़ गया था। राजा जनक इस समस्या से बहुत चिंतित थे और उन्होंने ऋषि-मुनियों से विचार-विमर्श किया। ऋषि-मुनियों ने राजा जनक को खेत में हल चलाने की सलाह दी, जिससे इंद्र देवता की कृपा बरस सके। राजा जनक ने वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को खेत में हल चलाया। जब हल से एक वस्तु टकराई, तो राजा जनक ने उस जगह की खुदाई करवाई। खुदाई के दौरान एक कलश मिला, जिसमें एक सुंदर कन्या थी। राजा जनक ने उसे अपनी पुत्री मानकर पालन-पोषण किया और उसका नाम सीता रखा। तभी से हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर सीता नवमी मनाई जाती है, जो माता सीता के प्राकट्य का प्रतीक है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं और माता सीता की पूजा करती हैं।

सीता नवमी की व्रत कथा 

प्राचीन काल में मारवाड़ क्षेत्र में एक ब्राह्मण देवदत्त अपनी पत्नी शोभना के साथ रहते थे। देवदत्त एक पुण्यात्मा और वेदों के ज्ञाता थे, जबकि उनकी पत्नी शोभना अपने आकर्षक रूप के लिए जानी जाती थीं। लेकिन शोभना ने अपने पति के साथ छल-कपट किया और व्यभिचार में पड़ गई। पूरे गांव ने उसकी निंदा की और उसने गुस्से में आकर पूरे गांव को आग लगा दी, जिसमें वह खुद भी मर गई। अगले जन्म में, शोभना को अपने कुकर्मों की सजा मिली। वह एक चांडाल के घर में जन्मी और चांडालिनी कहलाई। उसे गरीबी, कुष्ठ रोग और अंधेपन जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ा। एक दिन, वह भोजन की तलाश में कौशलपुरी पहुंची, जहां सीता नवमी का व्रत और पूजन हो रहा था। उसने भोजन की गुहार लगाई, लेकिन उसे अन्न नहीं मिला। एक भक्त ने उसे तुलसी और जल दिया, जिसे ग्रहण करके वह चली गई। अनजाने में, उसने सीता नवमी का व्रत पूर्ण कर लिया और माता सीता की कृपा से उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसके बाद, वह महाराजा जयसिंह की महारानी कामकला के रूप में पुनर्जन्म लेती है। व्रत के प्रभाव से उसे अपने पिछले जन्मों का स्मरण रहता है और वह अपने राज्य में देवालय बनवाती है, जिसमें जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाती है। वह अपना पूरा जीवन रघुनाथ और जानकी जी की सेवा में समर्पित कर देती है। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि सीता नवमी का व्रत करने से व्यक्ति को अपने पापों से मुक्ति मिल सकती है और जीवन में सुख-शांति प्राप्त हो सकती है।

सीता नवमी व्रत कथा पाठ से लाभ

  • सीता नवमी व्रत कथा के पाठ से व्यक्ति को अपने पापों से मुक्ति मिल सकती है।
  • इस व्रत कथा के पाठ से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और प्रेम बढ़ सकता है।
  • सीता नवमी व्रत कथा के पाठ से माता सीता की कृपा प्राप्त हो सकती है।
  • इस व्रत कथा के पाठ से व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास हो सकता है।
  • सीता नवमी व्रत कथा के पाठ से शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है।

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