सच्चे मन से माँ की,
ज्योत तुम जगाओ,
बिन मांगे सारे फल पाओ ॥
ये ही है दुर्गा ये ही माँ काली,
चाहे किसी भी रूप में मनाओ,
बिन मांगे सारे फल पाओ।
सच्चे मन से मां की,
ज्योत तुम जगाओ,
बिन मांगे सारे फल पाओ ॥
धन यश सुख सब देने वाली,
माँ से भंडार तुम भरवाओ,
बिन मांगे सारे फल पाओ।
सच्चे मन से मां की,
ज्योत तुम जगाओ,
बिन मांगे सारे फल पाओ ॥
तन मन करदो माँ को समर्पण,
शेर चरणों में शीश तुम नवाओ,
बिन मांगे सारे फल पाओ।
सच्चे मन से मां की,
ज्योत तुम जगाओ,
बिन मांगे सारे फल पाओ ॥
जगदाति की कर लो पूजा,
बस दाती के ही हो जाओ,
बिन मांगे सारे फल पाओ।
सच्चे मन से मां की,
ज्योत तुम जगाओ,
बिन मांगे सारे फल पाओ ॥
सच्चे मन से माँ की,
ज्योत तुम जगाओ,
बिन मांगे सारे फल पाओ ॥
था बिन दीनानाथ,
आंगली कुण पकड़सी जी,
तोरा मन दर्पण कहलाए,
भले, बुरे, सारे कर्मों को,
तोरी बगिया में आम की डाल,
कोयल बोले कुहू कुहू ॥
तृष्णा ना जाये मन से ॥