राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।
जीवने मरणे गति आर नाहि मोर ॥
कालिन्दीर कूले केलि-कदम्बेर वन ।
रतन वेदीर उपर बसाब दुजन ॥
श्याम गौरी अंगे दिब चन्दनेर गन्ध ।
चामर ढुलाब कबे हेरिब मुखचन्द्र ॥
गाँथिया मालतीर माला दिब दोंहार गले ।
अधरे तुलिया दिब कर्पूर ताम्बूले ॥
ललिता विशाखा आदि यत सखीवृन्द ।
आज्ञाय करिब सेवा चरणारविन्द ॥
श्रीकृष्णचैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास ।
सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास ॥
ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए। मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं, त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥1॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥