विवाह एक पवित्र संस्कार, जो दो लोगों को 7 जन्मों के लिए बांधता है। यह न केवल दो व्यक्तियों का मिलन है, बल्कि दो परिवारों का भी मिलन है। इसे हिंदू संस्कृति में एक पवित्र अनुष्ठान माना गया है। इसी कारण से लोग विवाह की सफलता के लिए पूजा करते हैं। यह पूजा दंपति के वैवाहिक जीवन में सुख, समृद्धि, प्रेम और आपसी समझ बनाए रखने के लिए की जाती है। विवाह को शुभ बनाने के लिए विभिन्न देवताओं की पूजा की जाती है। इससे विवाह करने वाले दंपत्ति के जीवन में आने वाली बाधाएं समाप्त होती हैं और जोड़े को सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। चलिए आपको विवाह के पूर्व की जाने वाली पूजा के महत्व, लाभ और प्रक्रिया के बारे में लेख के जरिए विस्तार से बताते हैं।
विवाह पूजा करने से नवविवाहितों के जीवन में आने वाली बाधाएं समाप्त होती हैं।उनका जीवन सुखमय और समृद्ध होता है। ग्रह दोषों से मुक्ति मिल जाती है। पति-पत्नी के बीच प्रेम और आपसी समझ बढ़ती है और परिवार में खुशहाली और सौभाग्य आता है।
विवाह पूजा का मुख्य उद्देश्य नवविवाहित जोड़े को देवी-देवताओं का आशीर्वाद दिलाना होता है। इससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है और देवताओं का आशीर्वाद भी उन पर बना रहता है। मान्यता है कि यह पूजा करने से पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम और समझ बढ़ती है। यह पूजा दोनों परिवारों के बीच प्रेम और सद्भाव को भी बढ़ाती है। इसी कारण से दोनों परिवार इस पूजा को करने से पीछे नहीं हटते हैं।
पंचांग के अनुसार फाल्गुना माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है। वहीं आज गुरुवार का दिन है। इस तिथि पर शतभिषा नक्षत्र और ध्रुव योग का संयोग बन रहा है।
सनातन धर्म के पूज्यनीय ग्रंथ रामचरितमानस में शबरी की तपस्या और भगवान श्रीराम के प्रति निष्ठा भाव को दर्शाया गया है। रामचरितमानस में माता शबरी भगवान श्रीराम की अनन्य भक्तों में से एक खास भक्त थीं।
नवरात्रि की शुरुआत सितंबर माह से ही हो जाएगी। विजयादशमी के दिन भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध किया था। इसी कारण से इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई।
पंचांग के अनुसार फाल्गुना माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी और नवमी तिथि है। वहीं आज शुक्रवार का दिन है। इस तिथि पर अनुराधा नक्षत्र और व्याघात योग का संयोग बन रहा है।