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फाल्गुन माह कालाष्टमी पूजा विधि

फाल्गुन माह कालाष्टमी पूजा विधि

Kalashtami 2025 Puja Vidhi: फाल्गुन मास की कालाष्टमी आज, जानें शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और उपाय


प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मासिक कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भगवान कृष्ण और काल भैरव की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त अष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। तंत्र सीखने वाले साधकों के लिए कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि बेहद खास होती है। इस शुभ अवसर पर साधक विशेष फल पाने के लिए या किसी काम में सफलता पाने के लिए काल भैरव देव की कठिन भक्ति करते हैं। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर काल भैरव देव साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि फाल्गुन माह में कालाष्टमी कब है और पूजा किस विधि से करनी चाहिए।


कब है कालाष्टमी?


हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 20 फरवरी दिन गुरुवार को सुबह 9 बजकर 58 मिनट पर हो जाएगा। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 21 फरवरी दिन शुक्रवार को सुबह 11 बजकर 57 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में 20 फरवरी को कालाष्टमी का पूजन और व्रत करना शुभ रहेगा।


शुभ योग


  • सूर्योदय - सुबह 06 बजकर 55 मिनट पर
  • सूर्यास्त - शाम 06 बजकर 15 मिनट पर
  • ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 05 बजकर 14 मिनट से 06 बजकर 04 मिनट तक
  • विजय मुहूर्त - दोपहर 02 बजकर 28 मिनट से 03 बजकर 14 मिनट तक
  • गोधूलि मुहूर्त - शाम 06 बजकर 12 मिनट से 06 बजकर 38 मिनट तक
  • निशिता मुहूर्त - रात्रि 12 बजकर 09 मिनट से 00 बजे तक


कालाष्टमी की पूजा विधि


  • कालाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए।
  • इसके बाद पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए।
  • फिर साफ-सुथरे कपड़े पहनने चाहिए। इसके बाद सूर्य देव को जल चढ़ाना चाहिए।
  • फिर घर के मंदिर की साफ-सफाई कर चौकी पर भगवान काल भैरव की मूर्ति या तस्वीर रखनी चाहिए।
  • शुभ मुहूर्त में भगवान काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। पूजा के समय भगवान भैरव को धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करना चाहिए और उनके सामने घी का दीपक जलाना चाहिए।
  • भगवान को हलवा, खीर, गुलगुले और जलेबी का भोग लगाना चाहिए।
  • कालाष्टमी की व्रत कथा सुननी या पढ़नी चाहिए। इसके साथ शिव चालीसा भी पढ़नी चाहिए।
  • शिव जी के मंत्रों का जाप करना चाहिए।
  • अंत में भगवान की आरती कर पूजा का समापन करना चाहिए।

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