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अघोरी कैसे बनते हैं

अघोरी कैसे बनते हैं

कैसे बनते हैं अघोरी? जानिए क्या होती है ये साधु बनने की पूरी प्रक्रिया और नियम 


अघोरी बाबा महाकुंभ में आकर्षण केंद्र हैं। अघोरी साधु तंत्र साधना करते हैं। अघोरियों को डरावना और खतरनाक प्रकार का साधु भी माना जाता है। अघोर बनने की पहली शर्त है अपने मन से घृणा को निकाल देना। ऐसा माना जाता है कि अघोरी मानव के मांस का सेवन भी करता है। हालांकि, यह सच नहीं है। ऐसा करने के पीछे यही तर्क है कि व्यक्ति के मन से घृणा निकल जाए। तो आइए, इस आर्टिकल में अघोरी बाबा कौन होते हैं और अघोरी बनने की क्या प्रकिया है इस बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं। 


कौन होते हैं अघोरी? 


साधु संत जो तंत्र साधना में लीन होते हैं, उन्हें अघोरी कहा जाता है। ये अक्सर तंत्र क्रियाओं को अंजाम देने के लिए श्मशान के सन्नाटे में दिखाई दे जाते हैं। अघोरी बनने की सबसे पहली शर्त है मन से घृणा को पूरी तरह से खत्म कर देना। वहीं, इसके अलावा जिन चीजों से मनुष्य जाति घृणा करती है, उन चीजों को भी अघोरी आसानी से अपना लेते हैं।


क्या सचमुच डरावने होते हैं अघोरी? 


अघोरी नाम सुनते ही सभी के मन में एक ऐसी तस्वीर उभर कर आती है, जिसकी लंबी-लंबी जटाएं हों, जिसका शरीर राख में लिपटा हो और जिन्होंने मुंड मालाएं गले में धारण की हों। माथे पर चंदन का लेप और उसके ऊपर उभरा हुआ तिलक। यह डरावना स्वरूप हर किसी के मन में भय पैदा कर सकता है। परंतु, इनके नाम का अर्थ विपरीत होता है। अघोरी एक ऐसा व्यक्ति होता है जो किसी से भी भेदभाव नहीं करता। यह अक्सर आपको श्मशान के सन्नाटे में जाकर तंत्र क्रिया करते हुए देखे जा सकते हैं। अघोर शब्द का अर्थ है जो घोर नहीं है, यानि जो डरावना नहीं सरल और सौम्य है। अघोरी देखने में बहुत अलग और डरावने हो सकते हैं। हालांकि, इनका दिल बच्चे की तरह मासूम होता है। इनके अंदर जन कल्याण की भावना होती है। अघोरी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वो कभी किसी से कुछ नहीं मांगते। 


अघोरी बनने के लिए देनी होती है 3 परिक्षाएं


अघोरी बनने के लिए तीन प्रारंभिक परीक्षा देनी पड़ती हैं। अघोरी बनने के लिए जरुरी है एक योग्य गुरु की तलाश करना। गुरु द्वारा बताई हर बात का पालन करना। इस दौरान गुरु द्वारा बीज मंत्र दिया जाता है। इसे हिरित दीक्षा कहा जाता है। दूसरी परीक्षा में गुरु शिष्य को शिरित दीक्षा देते हैं। इसमें गुरु शिष्य के हाथ, गले और कमर पर एक काला धागा बांधते हैं। साथ ही अपने शिष्य को जल का आचमन दिलाकर कुछ जरूरी नियमों की जानकारी देते हैं। तीसरी परीक्षा में शिष्य को रंभत दीक्षा गुरु द्वारा दी जाती है। इस दीक्षा में जीवन और मृत्यु का पूरा अधिकार गुरु को देना पड़ता है। इस दौरान अनेक कठिन परीक्षाएं भी देने पड़ती हैं। सफल होने के बाद गुरु को शिष्य को अघोरपंथ के गहरे रहस्यों के बारे में जानकारी देनी पड़ती है। 


भगवान शिव से जुड़ी है मान्यता 


मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को अघोर पंथ का प्रणेता माना जाता है। कहा जाता है भगवान शिव ने ही अघोर पंथ की उत्पत्ति की थी। वहीं भगवान शिव के अवतार भगवान दत्तात्रेय को अघोर शास्त्र का गुरु माना जाता है। भगवान विष्णु, भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप से दत्तात्रेय ने अवतार लिया था। अघोर संप्रदाय में बाबा कीनाराम की पूजा की जाती है। इस संप्रदाय के अघोरी भगवान शिव के अनुयाई होते हैं। 


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