सिर्फ नागपंचमी के दिन खुलता है उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर, यहां दर्शन मात्र से मिलेगी कालसर्प दोष से मुक्ति
महाकाल ज्योतिर्लिंग के लिए मशहूर धार्मिक नगरी उज्जैन में एक से बढ़कर एक चमत्कारिक मंदिर और उनके रहस्य छिपे हैं। ऐसा ही एक मंदिर बाबा महाकाल के प्रांगण में स्थित है, ये मंदिर अपनी विशेष प्रकार की पूजा विधि के प्रसिद्ध है और साल में सिर्फ एक विशेष दिन के लिए खोला जाता है। मंदिर में भगवान शिव के आभूषण नाग देवता विराजमान है, जिनके दर्शन मात्र से कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। तो आइए भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में जानेंगे इस मंदिर के बारे में विस्तार से….
सर्प शैय्या पर विराजमान है भगवान गौरी-शंकर और गणेश
उज्जैन के महाकाल मंदिर के तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसे सिर्फ नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) के दिन दर्शन के लिए खोला जाता है। यह मंदिर भगवान शिव के गले के आभूषण माने जाने वाला बाबा नागराज या वासुकि जी को समर्पित है। नागचंद्रेश्वर मंदिर में महादेव सांप के बिस्तर पर विराजमान हैं। मंदिर में जो प्राचीन मूर्ति स्थापित है उस पर शिव जी, गणेश जी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, दुनिया में कही भी ऐसी कोई मूर्ति नहीं है जहां भगवान शिव, श्री हरि विष्णु के जैसे एक सांप के बिस्तर पर विराजमान है। मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति कालसर्प दोष से जूझ रहा है उसे इस मंदिर में आकर नागराज के दर्शन करने चाहिए। यहाँ दर्शन करने मात्र से आपकी कुंडली से काल सर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है।
नेपाल से मंगवाई गई सर्प शैय्या वाली मूर्ति
यह मंदिर और इसमें रखी नागराज की मूर्ति करीब 800 साल पुरानी बताई जाती है। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार यह मूर्ति नेपाल से मंगवाई गई थी। परमार राजवंश के राजा भोज ने साल 1050 में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया राजवंश के महाराज राणोजी सिंधिया ने साल 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था जिसके साथ इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था।
सबसे पहले होती है सरकारी पूजा
नागपंचमी पर रात 12 बजे मंदिर के पट खुलते है और 24 घंटे बाद बंद हो जाते है। इस मंदिर में विशेष प्रकार पूजा होती है। त्रिकाल पूजा का अर्थ है सूर्योदय, सूर्यास्त, और सूर्य मुख से प्रारम्भ होने वाले तीन संध्याकाल में की जाने वाली पूजा। नागपंचमी की रात 12 बजे उज्जैन के कलेक्टर भगवान शिव और नागराज की पहली पूजा करते है जिसे सरकारी पूजा कहा जाता है। इसी पूजा के बाद मंदिर भक्तों के लिए खोला जाता है। यह परंपरा परमार राजवंश के समय से चली आ रही है। उसके बाद दोपहर 12 बजे की पूजा होती है। फिर नागपंचमी की रात को 12 बजे अखाड़े पूजन करने के उपरांत मंदिर के कपाट वापस एक साल के लिए बंद कर दिए जाते है। नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।
सर्पराज तक्षक से जुड़ी मंदिर की कथा
सर्पराज तक्षक ने भगवान शिव को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व यानी अमर होने का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यह प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है।
उज्जैन रेलवे स्टेशन से मात्र 2 किमी दूर है मंदिर
उज्जैन, रेल और सड़क मार्ग से देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। रेलवे स्टेशन महज 2 किमी दूर है। सबसे नजदीक का एयरपोर्ट इंदौर का देवी अहिल्या बाई होल्कर हवाईअड्डा है जो उज्जैन से करीब 53 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा अन्य शहरों के लिए बस सेवा भी उपलब्ध है। उज्जैन में हिन्दू समाज की कई धर्मशालाएं है जहां आप विश्राम कर सकते है। धर्मशाला के आलावा आपको बहुत से सस्ते रेस्टहाउस और होटल भी मंदिर के आस पास मिल सकते है।
कुंभ भारतीय वैदिक-पौराणिक मान्यता का महापर्व है। महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी 2025 को प्रयागराज में पौष पूर्णिमा स्नान से होने वाली है और यह 26 फरवरी तक चलेगा। महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है।
सनातन धर्म में कुंभ मेले का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। मान्यता है कि करोड़ों वर्ष पूर्व देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जो अमृत कुंभ निकला था, उसके अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गई थीं।
13 जनवरी 2025 से महाकुंभ की शुरुआत हो रही है। महाकुंभ न केवल भारत में प्रसिद्ध है बल्कि विदेशों में भी इसका आकर्षण देखने को मिलता है। इस बार महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है।
महाकुंभ में शाही स्नान के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। महाकुंभ में स्नान करने से मृत्यु पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। शाही स्नान में सबसे पहले साधु-संत स्नान करते हैं उसके बाद ही आम तीर्थयात्री गंगा में डुबकी लगाते हैं।