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महाकुंभ अक्षयवट पूजा

महाकुंभ अक्षयवट पूजा

Mahakumbh 2025: महाकुंभ में अक्षयवट पूजा क्यों है जरूरी, जानिए क्या है इसका धार्मिक महत्व 


13 जनवरी 2025 से महाकुंभ की शुरुआत हो रही है। महाकुंभ न केवल भारत में प्रसिद्ध है बल्कि विदेशों में भी इसका आकर्षण देखने को मिलता है। इस बार महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है। महाकुंभ के साथ-साथ प्रयागराज में संगम के किनारे स्थित अक्षय वट भी चर्चा का विषय है। चलिए जानते हैं इस विषय में।


क्यों खास है अक्षयवट? 


मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान अक्षयवट के दर्शन मात्र से व्यक्ति के पापों का नाश हो जाते हैं और जीवन-मरण के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। इस वक्ष को काफी पवित्र माना जाता है। महाकुंभ के दौरान इसकी परिक्रमा भी की जाती है। महाभारत और अन्य पुराणों में इस वृक्ष को ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा संरक्षित बताया गया है, जिस कारण इसे त्रिदेवों की कृपा का स्थान भी माना जाता है। इसके साथ ही यह भी माना गया है कि इस अक्षय वट की पूजा-अर्चना से साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति हो सकती है। त्रिवेणी संगम के पास स्थित होने के कारण यह वृक्ष तीर्थयात्रियों और श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। 


अक्षयवट से जुड़ी कथाएं


अक्षय वट वृक्ष को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार, जब अपने वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ प्रयागराज आए, तो उन्होंने इसी वट वृक्ष के नीचे विश्राम किया था। इसी के साथ यह स्थान कई ऋषि-मुनियों का तपस्थल भी रहा है। पौराणिक मान्यता है कि ऋषि मार्कंडेय ने इसी वृक्ष के नीचे तपस्या की थी। इसी के साथ जैन धर्म के अनुयायियों का मानना है कि उनके तीर्थंकर ऋषभदेव ने भी इसी अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी, इसलिए इस स्थान को ऋषभदेव तपस्थली या तपोवन के नाम से भी जाना जाता है।


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लचकि लचकि आवत मोहन,
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लड्डू गोपाल मेरा, लड्डू गोपाल ।
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