17 सितंबर को एक खास दिन है, जब अनंत चतुर्दशी व्रत, अनंत पूजा और बाबा विश्वकर्मा पूजा एक साथ मनाए जाएंगे। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान विश्वकर्मा की विशेष आराधना का अवसर है। इन दोनों पूजा विधियों के धार्मिक महत्व और अनुष्ठानों पर आइए विस्तार से नजर डालते हैं।
अनंत पूजा, जिसे अनंत चतुर्दशी भी कहा जाता है, भगवान विष्णु की आराधना का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन की पूजा में विशेष रूप से अनंत की 14 गांठों वाले धागे की पूजा की जाती है। यह धागा 14 लोकों का प्रतीक है, जो जीवन की अनंतता और ईश्वर की असीम शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
1. व्रत और पूजन:
अनंत चतुर्दशी के दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं, जिसमें पूरे दिन उपवासी रहकर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। यह व्रत पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ किया जाता है।
पूजा के लिए घर में एक विशेष स्थान तैयार किया जाता है, जहां अनंत की 14 गांठों वाले धागे को रखा जाता है। इस धागे की पूजा करते हुए भक्त भगवान विष्णु के समस्त गुणों का वर्णन करते हैं।
2. भगवान विष्णु की आराधना:
पूजा के दौरान भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है, जो भगवान की दिव्य महिमा को प्रकट करता है। यह पाठ पूजा का एक अहम हिस्सा होता है, जो भक्तों को शांति और पुण्य की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।
भक्त भगवान विष्णु को विशेष वस्त्र, पुष्प, फल और मिठाइयों का अर्पण करते हैं। यह अर्पण भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए एक आदर्श तरीका है।
3. अनंत धागे को बांधना:
पूजा के समय, अनंत धागा हाथ पर बांधते हैं, जो शुभता, समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक होता है। धागा बांधने के बाद, यह सुनिश्चित किया जाता है कि पूरे दिन कोई भी पाप या गलत काम न किया जाए।
यह धागा भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और असीमित आशीर्वाद का संचार करता है, जिससे उनके जीवन में उन्नति और सुख-समृद्धि आती है।
4. विसर्जन:
पूजा के समापन पर, कुछ स्थानों पर अनंत धागे को जल में विसर्जित किया जाता है। यह विसर्जन प्रक्रिया पुण्य की प्राप्ति का संकेत है और यह माना जाता है कि इससे भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
विश्वकर्मा पूजा भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है, जो सृष्टि के प्रमुख शिल्पकार और वास्तुकार हैं। यह पूजा खासकर उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो निर्माण, शिल्प और यांत्रिकी के क्षेत्र में कार्यरत हैं। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की आराधना से कार्यस्थल पर सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
1. कार्यस्थल की सफाई और सजावट:
विश्वकर्मा पूजा के दिन, श्रमिक और कारीगर अपने कार्यस्थलों की विशेष सफाई और सजावट करते हैं। मशीनों और उपकरणों को फूलों, रंग-बिरंगे वस्त्रों और सजावटी सामान से सजाया जाता है।
यह सजावट कार्यस्थल की सुंदरता और शांति को बढ़ाने के साथ-साथ, उपकरणों और मशीनों की सुरक्षा और उनके सही कामकाज को सुनिश्चित करने का प्रतीक होती है।
2. पूजा और भोग:
भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है। इस मूर्ति को विशेष पूजा पंडालों में सजाया जाता है और भक्त उनकी आराधना करते हैं।
पूजा के दौरान, मिठाइयां, फल और अन्य भोग अर्पित किए जाते हैं। यह भोग भगवान के प्रति आभार और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए अर्पित किए जाते हैं।
3. उपकरणों का उपयोग नहीं:
पूजा के दिन, सभी उपकरणों और मशीनों का उपयोग नहीं किया जाता है। यह एक आदर और सम्मान का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि उपकरणों और मशीनों का उचित उपयोग और देखभाल कितनी महत्वपूर्ण है।
इस दिन उपकरणों को न छूने का नियम, उनकी महत्ता और उनके प्रति श्रद्धा को प्रकट करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वे लंबे समय तक सही तरीके से काम करें।
4. भजन और प्रार्थना:
भक्त भगवान विश्वकर्मा के भजन गाते हैं और विशेष प्रार्थनाएं करते हैं। ये भजन और प्रार्थनाएं कार्यक्षेत्र में उन्नति और समृद्धि के लिए भगवान के आशीर्वाद की कामना करती हैं।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा का शास्त्रों में विशेष स्थान है। उन्हें सृष्टि के सबसे बड़े शिल्पकार और दिव्य शस्त्रों के निर्माता के रूप में पूजा जाता है।
1. ऋग्वेद: ऋग्वेद में भगवान विश्वकर्मा को सर्वव्यापी देवता के रूप में वर्णित किया गया है। वह ब्रह्मांड की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और सभी दिशाओं में व्याप्त हैं।
2. महाभारत और रामायण: महाभारत में भगवान विश्वकर्मा ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया, जबकि रामायण में उन्होंने लंका और पुष्पक विमान का निर्माण किया था।
3. वास्तुशास्त्र: वास्तुशास्त्र, जो निर्माण और भवन निर्माण की प्राचीन भारतीय प्रणाली है, भगवान विश्वकर्मा को अपनी प्रमुख प्रेरणा मानता है। उनकी पूजा से निर्माण कार्य और वास्तुकला में सफलता प्राप्त होती है।
इस प्रकार, 17 सितंबर का दिन अनंत पूजा और विश्वकर्मा पूजा के संगम का अद्वितीय दिवस है। इस दिन की विशेष पूजा विधियों के द्वारा भक्त भगवान विष्णु और भगवान विश्वकर्मा से आशीर्वाद प्राप्त कर अपने जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता की कामना करते हैं।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पूजा-पाठ, स्नान-दान और भगवान की आराधना करने से साधक को शुभ फल प्राप्त होते हैं।
मासिक दुर्गाष्टमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसे हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन मां दुर्गा की आराधना और व्रत के लिए शुभ माना जाता है।
जिसने राग-द्वेष कामादिक,
जीते सब जग जान लिया
मार्गशीर्ष माह की दुर्गाष्टमी का दिन मां दुर्गा की आराधना और भक्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस साल मार्गशीर्ष दुर्गाष्टमी 8 दिसंबर 2024, रविवार को पड़ रही है।