दीपावली के पावन पर्व पर माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए लोग विधि विधान से उनकी पूजन करते हैं। विष्णुप्रिया माता की आराधना करने से जीवन में प्रसन्नता, सुख, शांति, धन, वैभव, पद, प्रतिष्ठा, मान, सम्मान और ख्याति के साथ भक्ति में भी इजाफा होता है। ऐसे में यदि आप जीवन में किसी परेशानी या आर्थिक तंगी के साथ दरिद्रता से परेशान है तो भक्त वत्सल के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं दीपावली पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने का एक विशेष उपाय….
मां लक्ष्मी की शीघ्र कृपा पाने हेतु आप ऋग्वेद से लिए गए श्री सूक्त स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं। वैसे तो श्री सूक्त स्त्रोत का पाठ रोजाना किया जा सकता है लेकिन यदि रोजाना समय ना हो तो शुक्रवार को श्री सूक्त स्त्रोत का पाठ करना काफी लाभप्रद हो सकता है। विवाह के समय, गृह प्रवेश के समय पर भी इसका पाठ किया जा सकता है। इसके अलावा दीपावली के दिन श्री सूक्त का पाठ जरूर करना चाहिए क्योंकि श्री सूक्त माता का अत्यंत प्रिय स्त्रोत है और इसके पठन से माता जल्दी प्रसन्न होती हैं।
इसके हर एक मंत्र में एक गहन रहस्य है, इस दीपावली जो व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति से परेशान है और अनेक प्रयत्न करने के बाद भी सफल नहीं हो पा रहा है, तो वह मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उनकी विशेष कृपा पाने हेतु ऋग्वेद वर्णित श्री सूक्त स्त्रोत का पाठ अवश्य करें। माता लक्ष्मी आपकी सभी मनोकामनाएं आवश्यक पूर्ण करेंगी, यदि आप संस्कृत में इसका पाठ नहीं कर पाते हैं तो आप इसके हिंदी अनुवाद का भी पाठ कर सकते हैं।
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम्।चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह॥ (1)ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम॥ (2 )ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद्प्रमोदिनिम।श्रियं देविमुप हव्ये श्रीर्मा देवी जुषताम ॥ (3)ॐ कां सोस्मितां हिरण्य्प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।पद्मेस्थितां पदमवर्णां तामिहोप हवये श्रियम्॥ (4 )ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्ती श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।तां पद्मिनीमी शरणं प्रपधे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥ (5 )ॐ आदित्यवर्णे तप्सोअधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोsथ बिल्वः।तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याष्च बाह्य अलक्ष्मीः॥ (6 )उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।प्रदुर्भूतोsस्मि राष्ट्रेsस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में ॥ (7 )क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठमलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्णुद में गृहात्॥ (8 )गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यापुष्टां करीषिणीम्।ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप हवये श्रियम्। (9 )मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।पशुनां रूपमन्नस्य मयि श्रियं श्रयतां यशः॥ (10 )कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम।श्रियम वास्य मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥ (11 )आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस् मे गृहे।नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ (12)आद्रॉ पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पदमालिनीम्।चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह॥ (13)आद्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह॥ (14 )तां म आवह जातवेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम् ।यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योsश्रान विन्देयं पुरुषानहम्॥ (15 )यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत्॥ (16 )
इतनी कथा सुनकर महाराज युधिष्ठिर बोले हे भगवन् ! आपके श्रीमुख से इन पवित्र कथाओं को सुन मैं कृतकृत्य हो गया।
इतनी कथा सुन महाराज युधिष्ठिर ने कहा- भगवन्! आपको कोटिशः धन्यवाद है जो आपने हमें ऐसी सर्वोत्तम व्रत की कथा सुनाई।
भगवान् कृष्ण ने कहा- हे पाण्डुनन्दन ! अब मैं तुम्हें बरूथिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनाता हूँ सुनिये।
भगवान् कृष्ण के मुखरबिन्द से इतनी कथा सुनकर पाण्डुनन्दन महाराज युधिष्ठिर ने उनसे कहा - हे भगवन् ! आपकी अमृतमय वाणी से इस कथा को सुना परन्तु हृदय की जिज्ञासा नष्ट होने के बजाय और भी प्रबल हो गई है।