दीवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा-उपासना कर उनसे धन-वैभव और सुख-शांति की कामना की जाती है। धन की देवी मां लक्ष्मी को लेकर कहा जाता है कि मां का स्वभाव बहुत ही चंचल है और वो किसी एक जगह पर अधिक समय तक नहीं रुकती हैं। देवी का जब तक मन होता है वो एक स्थान पर रहतीं हैं और अपने चंचल चलायमान स्वभाव के चलते वहां से चलीं जाती है। ऐसे में मां के आशीर्वाद और साथ रहने घर में संपन्नता और ऐश्वर्य रहता है जबकि मां के रूठ जाने से जीवन में संपन्नता भी मुंह मोड़ लेती है। इसलिए माता की कृपा पाने के लिए भक्त सदैव प्रयासरत रहते हैं और देवी लक्ष्मी की पूजा-उपासना करते हैं।
माता लक्ष्मी, जगतपिता भगवान विष्णु की पत्नी हैं और क्षीर सागर में उनके साथ ही निवास करती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं विष्णु प्रिया और धन की देवी मां लक्ष्मी की उत्पत्ति कैसे हुई? भक्त वत्सल के दीवाली विशेष लेख में हम आपको बताते हैं माता लक्ष्मी की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा।
विष्णु पुराण में मिलने वाली इस पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ऋषि दुर्वासा ने स्वर्ग के देवता राजा इंद्र को एक फूलों की माला से सम्मानित किया। लेकिन राजा इंद्र ने इसे अपने हाथी ऐरावत को पहना दिया। हाथी ने अपने स्वभाव के अनुसार इस फूलों की माला को तहस-नहस कर फेंक दिया। इन्द्र के इस व्यवहार से ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने राजा इंद्र को श्राप दिया कि जिस अहंकार के चलते तुमने मेरी भेंट का अपमान किया है, वही तुम्हारे पुरुषार्थ क्षीण होने का कारण बनेगा और शीघ्र ही देवलोक से तुम्हारा आधिपत्य समाप्त हो जाएगा।
समय के साथ उनकी बात सत्य साबित हुई और दानवों का तीनों लोकों पर आधिपत्य हो गया। श्राप के अनुसार राजा इंद्र का सिहांसन भी छिन गया। इसके बाद देवगण भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। इस पर भगवान ने देवताओं को समुद्र मंथन करने की बात कही। श्री हरि विष्णु के कथन अनुसार अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं ने दानवों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने की योजना बनाई। वासूकी नाग को रस्सी और मंदरांचल पर्वत की मथनी बनाकर क्षीर सागर में समुद्र मंथन शुरु हुआ। इस मंथन से 14 अनमोल रत्न सहित अमृत और विष प्राप्त हुआ। इन सबके बाद समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी की भी उत्पत्ति हुई जो भगवान विष्णु की अर्धांग्नी के रूप में जगत माता बनीं।
साथ ही देवताओं ने मंथन से निकले अमृत का पान किया और अमरत्व प्राप्त कर अमर हो गये। फिर देवासुर महासंग्राम में देवताओं की जीत हुई और अमरत्व से राजा इंद्र ऋषि दुर्वासा के श्राप से मुक्त हो गये।
मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन में देवी लक्ष्मी का प्राक्ट्य कार्तिक मास की अमावस्या को हुआ था इसलिए है अमावस्या यानी दीवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है।
भगवान शिव के रुद्राभिषेक से लेकर साधारण पूजा तक उनको अर्पित की जाने वाली प्रत्येक सामग्री का विशेष ध्यान रखा जाता है। शास्त्रों में शिव को अर्पित होने वाली प्रत्येक सामग्री का महत्व बताया गया है।
हिंदू धर्म में गाय को अत्यंत पूजनीय और पवित्र माना गया है। इसे केवल एक पशु नहीं, बल्कि मां का दर्जा दिया गया है। भारतीय समाज में गाय का स्थान इतना महत्वपूर्ण है कि इसकी पूजा की जाती है और इसे देवी का स्वरूप माना जाता है।
कुंभ का मेला आध्यात्मिकता और धार्मिक परंपराओं का जीवंत स्वरूप है। कुंभ के अवसर पर शाही स्नान का आयोजन होता है, जिसमें देशभर के साधु-संत विभिन्न अखाड़ों के माध्यम से शामिल होते हैं।
हिंदू धर्म में वाराणसी को धर्म की नगरी कहा जाता है। जो सबसे पवित्र स्थानों में एक माना जाता है। वाराणसी का पुराना नाम काशी है। काशी को प्रकाश का स्थान भी कहा जाता है। यहां भगवान शिव का मंदिर है।