परम शक्ति मां भवानी अम्बिका की आराधना के पवित्र दिनों को हम नवरात्रि के रूप में मनाते हैं। इन दिनों सभी सनातनी मैय्या के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा अर्चना करते हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी रुप में हमें दर्शन देती हैं। भक्त वत्सल की नवरात्रि विशेष श्रृंखला के चौथे भाग में हम आपको बताते हैं कि माँ के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना किस प्रकार करें और मैय्या के इस रूप का पौराणिक महत्व क्या है?
माता ब्रह्मचारिणी को भी पर्वतराज हिमालय और मैना की पुत्री माना गया है। मां ने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की और इसके फलस्वरूप वो शिव की अर्धांगिनी बनीं। ब्रह्म मतलब तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस शब्दार्थ के अनुसार ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप का आचरण करने वाली। परम तपस्विनी रूप में मैय्या का यह रूप दूसरी नवरात्रि को पूजा जाता है। माता के अति सुंदर इस स्वरूप में मां अपने दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल लिए हुए हैं।
भविष्य पुराण के अनुसार मैय्या के इस स्वरूप की आराधना करने से साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर सकता है। शास्त्रों में ब्रह्मचारिणी मां को तपश्चारिणी भी कहा गया है। देवी ब्रह्मचारिणी के ज्योर्तिमय रूप में मां को अर्पणा और उमा नाम से भी पूजा जाता है। ब्रह्मचारिणी मां जीवन में सफलता देने वाली और हर बाधा को दूर करने वाली हैं। माँ दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है।
मैय्या ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनुष्य तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम के मार्ग से पुण्य प्राप्त करता है। साथ ही कठिन समय में भी मनुष्य विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी देवी सर्वत्र सिद्धि और विजय देने वाली है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान चक्र’ में स्थिर होता है। मैय्या अपने साधकों के मन की मलीनता, दुर्गणों व दोषों को खत्म कर हर क्षेत्र में उनका मार्ग प्रशस्त कर उनकी जीत सुनिश्चित करती हैं।
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की शुरुआत हाथों में एक फूल लेकर उनके ध्यान से करें।
प्रार्थना करते हुए नीचे लिखा श्लोक बोलें।
दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु |देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
इसके बाद देवी को पंचामृत स्नान कराएं।
फिर फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर और अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें।
देवी को सफेद फूल या कमल का फूल चढ़ाने का भी विशेष महत्व है।
इसके बाद देवी मां को प्रसाद चढ़ाएं और आचमन करवाएं।
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को चीनी का भोग लगाना चाहिए।
साथ ही ब्राह्मण को चीनी दान करने का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य को मां दीर्घायु का आशीर्वाद देती हैं।
प्रसाद के बाद पान सुपारी भेंट कर प्रदक्षिणा करें।
इस दौरान 3 बार अपनी ही जगह खड़े होकर गोल घूमें।
प्रदक्षिणा के बाद घी व कपूर से मैय्या की आरती करें।
क्षमा प्रार्थना और प्रसाद वितरण के साथ पूजन संपन्न करें।
इसके अलावा जिन कन्याओं का विवाह तय हो गया है इस दिन उनकी विशेष पूजन करना चाहिए ये बहुत ही शुभ माना गया है।
उनको पूजन कर भोजन कराने और वस्त्र, पात्र आदि भेंट करने से मैय्या प्रसन्न होती हैं।
भक्तवत्सल के नवरात्रि विशेष सीरीज में ये थी आज माता ब्रह्माचारिणी की कहानी, माता के अलग अलग रुप और उनकी पूजा विधि समेत माता जी के रोचक प्रसंगों को जानने के लिए जुड़े रहिए भक्तवत्सल के साथ
पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि है। इस तिथि पर चित्रा नक्षत्र और ध्रुव योग का संयोग बन रहा है। वहीं चंद्रमा तुला राशि में हैं और सूर्य मीन राशि में मौजूद हैं।
होली भाई दूज भाई-बहन के प्रेम और स्नेह के प्रतीक का त्योहार है, जो होली के बाद मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक कर उसकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती है।
चैत्र माह हिंदू पंचांग का पहला और अत्यंत पावन महीना है, जिसे भक्ति, साधना और आराधना का प्रतीक माना जाता है। इस महीने से न केवल हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है, बल्कि प्रकृति में भी बदलाव दिखाई देता है।
आम तौर पर नए साल की शुरुआत 1 जनवरी को होती है। लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार नववर्ष की शुरुआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होती है। इस बार यह तिथि 30 मार्च को पड़ेगी। बता दें कि हिंदू कैलेंडर, आम कैलेंडर से 57 साल आगे चलता है, जिसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है।