हर साल माघ माह में कल्पवास के लिए प्रयागराज में लोग पहुंचते हैं। लेकिन इस साल प्रयागराज में होने वाला महाकुंभ माघ माह में होने जा रहा हैं। ऐसे में इस बार यह संख्या दोगुनी होने वाली है। बता दें कि कल्पवास की परंपरा सदियों से चल रही है। मानसिक और आध्यात्मिक शांति के इस मार्ग का पालन बड़े बड़े साधु संतों से लेकर महान राजाओं ने किया है। इसे मोक्ष की प्राप्ती का मार्ग भी माना जाता है। जिसके कारण इसका पालन करते समय कई नियमों को ध्यान में रखना होता है। चलिए आपको विस्तार से कल्पवास के नियमों के बारे में बताते हैं।
हिंदू धर्म में कल्पवास की परंपरा मोक्ष और शांति का साधन है। यह माघ महीने में गंगा, यमुना , सरस्वती के संगम पर संयमित जीवन जीने की परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है। पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए भी इसका खास महत्व है। माना जाता है कि जो व्यक्ति कल्पवास का प्रक्रिया का पालन करता है, उसे सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
कल्पवास के दौरान कई नियमों का पालन करना होता है।
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व होता है। लेकिन ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली अमावस्या सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल ज्येष्ठ अमावस्या 27 मई को मनाई जाएगी।
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि सनातन धर्म में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने, पितरों की शांति के लिए तर्पण करने और पुण्य कमाने का उत्तम समय होता है।
ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार विशेष महत्व रखती है। यह तिथि न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अहम होती हैI
इस बार श्रावण मास २२ जुलाई सोमवार के दिन से ही शुरू होकर १९ अगस्त सोमवार को ही समाप्त हो रहा है इस बार श्रावण मास में पांच सर्वार्थ सिद्धि योग एक अमृत सिद्धि योग और रवि पुष्य का विशेष संयोग रहेगा।