छठ सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि महापर्व है, जो चार दिनों तक चलता है। इसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जो डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होता है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है, पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाए जाने वाले छठ पर्व को 'चैती छठ' और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाए जाने वाले पर्व को 'कार्तिक छठ' कहा जाता है। यह पर्व पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। इसका एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है।
धर्म ग्रंथो के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा को कोई संतान नहीं थी. उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए हर संभव प्रयास किए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. तब महर्षि कश्यप ने राजा को संतान प्राप्ति के लिए पुत्रयेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। राजा के मृत बच्चे की खबर से पूरे नगर में मातम फैल गया। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आकाश से एक तेजोमय विमान धरती पर उतरा। उसमें बैठी देवी ने कहा, 'मैं षष्ठी देवी हूं और संसार के सभी बालकों की रक्षक हूं।' यह कहकर देवी ने बालक के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो गया। इसके बाद राजा ने अपने राज्य में इस पर्व को मनाने की घोषणा की।
छठ पूजा की परंपरा मान्यता के अनुसार जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राज सूर्य यज्ञ करने का निर्णय लिया। उन्होंने पूजा के लिए मुद्गल ऋषि को आमंत्रित किया। मुद्गल ऋषि ने माता सीता पर गंगाजल छिड़ककर उन्हें पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की पूजा करने का आदेश दिया। इसके साथ ही सीता ने मुद्गल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव की पूजा की। सातवें दिन उन्होंने फिर सूर्योदय के समय अनुष्ठान किया और सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया।
छठ पूजा के दौरान साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना होता है। साथ ही शुद्ध आचरण और विचारों के साथ सात्विक भोजन ही करना चाहिए। छठ पूजा में लोगों में बांटने के लिए जो भी प्रसाद बनाया जाए, उसे व्रती को ही बनाना चाहिए। इसके अलावा छठ पर्व के दौरान किसी भी खाने में लहसुन और प्याज का इस्तेमाल करना वर्जित होता है।
पंचांग के अनुसार पौष माह में साल 2025 की पहली विनायक चतुर्थी 03 जनवरी को मनाई जाएगी। पौष माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 03 जनवरी को देर रात 01 बजकर 08 मिनट पर शुरू होगी।
शैव संप्रदाय के 7 प्रमुख अखाड़े हैं। इनमें से ही एक अखाड़ा है 'आनंद अखाड़ा'। इसका पूरा नाम 'श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती’ है।
हिंदू कैलेंडर 2025 शुभ मुहूर्त, पर्व-त्योहार, और व्रतों की जानकारी देने वाला विस्तृत पंचांग।
भगवान कार्तिकेय को समर्पित स्कंद षष्ठी का पर्व हर महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। कहते हैं इस तिथि पर भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को स्कंद षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।