विश्व के प्राचीन हिंदू मंदिरों में से एक मंदिर कंबोडिया में भी स्थित है। इसका नाम अंकोरवाट मंदिर है। इस मंदिर का पुराना नाम यशोदापुर था। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर इतना खास है कि यह कंबोडिया का राष्ट्रीय प्रतीक है। ये मंदिर कंबोडिया के राष्ट्रीय ध्वज पर भी अंकित है। इंडोनेशिया के निवासी इस मंदिर को जलमग्न मंदिर उद्यान भी कहते हैं।
अंगकोरवाट मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा सूर्यवर्मन ने करवाया था। मंदिर की दीवारों पर आपको रामायण और महाभारत जैसे कई धार्मिक ग्रंथों के संदर्भ मिल जाएंगे। यहां की दीवारों पर आपको अप्सराओं की नृत्य मुद्राएं, कला कार्य और असुरों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन के दृश्य भी दिखेंगे। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान इंद्र ने अपने पुत्र लिए महल के रूप में करवाया था।
इस मंदिर का निर्माण कार्य सूर्यवर्मन द्वितीय ने किया था, लेकिन कहते हैं कि यह धारिद्रवर्मन के शासनकाल में बनकर तैयार हुआ था। बता दें कि इस मंदिर का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हैं। यह मंदिर एक चबूतरे पर बना है जिसके तीन खंड है।
इस मंदिर की रक्षा के लिए चारों तरफ खाई बनवाई गई, जिसकी चौड़ाई लगभग 700 फुट है। दूर से यह खाई झील की तरह दिखती है। मंदिर के पश्चिम की ओर से इस खाई को पार करने के लिए एक पुल बना हुआ है। पुल के पार मंदिर में प्रवेश करने के लिए एक विशाल द्वार है, जो लगभग 1 हजार फुट चौड़ा है। अंगकोरवाट मंदिर यहां का एक ऐसा अकेला स्थान है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की मूर्तियां एक साथ है।
कंबोडिया के मिकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में स्थापित इस मंदिर के प्रति वहां के लोगों में अपार श्रद्धा है। यहीं कारण है कि इस मंदिर को राष्ट्र के लिए सम्मान का प्रतीक माना जाता है और इसे कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है। ये मंदिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है।
कोई भी भारत से बैंकॉक के लिए उड़ान भर सकता है और वहां से सिएम रीप के लिए सीधी उड़ान ले सकते हैं। एयरपोर्ट पहुंचकर आर टैक्सी से मंदिर पहुंच सकते हैं।
ॐ जय गङ्गाधर हर, जय गिरिजाधीशा।
त्वं मां पालय नित्यं, कृपया जगदीशा॥
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित, फलको पूर्ण करे॥
जयति जयति जग-निवास,शंकर सुखकारी॥
जयति जयति जग-निवास,शंकर सुखकारी॥