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आषाढ़ नवरात्रि के पहले दिन होती है मां काली की पूजा, जानें उनके प्रसिद्ध मंदिर कालीघाट के बारे में

आषाढ़ नवरात्रि के पहले दिन होती है मां काली की पूजा, जानें उनके प्रसिद्ध मंदिर कालीघाट के बारे में

हिंदू धर्म में शक्ति की साधना के लिए नवरात्रि का पर्व सबसे उत्तम माना गया है। शक्ति या फिर कहें देवी पूजा का महत्व और बढ़ जाता है जब साधक आषाड़ मास के शुल्कपक्ष में पड़ने वाली गुप्त नवरात्रि में देवी दुर्गा के लिए जप-तप और व्रत करता है। दस महाविद्या में काली प्रथम रुप है। आषाढ़ नवरात्रि के पहले दिन काली माता की पूजा की जाती है। महा दैत्यों का वध करने के लिए माता ने ये रुप धारण किया था। सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता की वीरभाव में भी पूजा की जाती है। यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरुढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के सामने प्रकट होने वाली काली माता को नमस्कार। मां काली की उपासना करने से शत्रुओं का असर जीवन पर कम हो जाता है और नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती है। साथ ही सभी प्रकार के भय और रोग के मुक्ति मिल जाती है। आइयें यहां हम आपकों बताते हैं। काली मां के मंदिर कालीघाट के बारे में जो कि कोलकाता में स्थित और एक शक्तिपीठ है।


कालीघाट मंदिर


कालीघाट मंदिर एक प्राचीन और सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक हैं। कालीघाट मंदिर में मां काली की पूजा की जाती है। मंदिर हुगली नदी के किनारे पर स्थित था, लेकिन तब से नदी पीछे हट गई है और अपना रास्ता बदल चुकी है। यह वर्तमान में एक संकरी नहर के किनारे स्थित है जो हुगली की ओर जाती है। कालीघाट मंदिर को वह स्थान कहा जाता है जहां देवी सती की मृत्यु के बाद उनके दाहिने पैर की उंगलिया वहां गिरी थी। कलकत्ता को इसका नाम मंदिर से मिला लेकिन अब बदलकर कोलकाता कर दिया गया। यह मंदिर काली भक्तों के लिए सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर में देवी काली की प्रचण्ड रुप में प्रतिमा स्थापित है। कुछ अनुश्रुतियों के मुताबिक, देवी किसी बात पर बहुत क्रोधित हो गई थी। उसके बाद उनके मार्ग में जो भी आता वो मारा जाता। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके मार्ग में लेट गए। देवी ने क्रोध में उनकी छाती पर भी पैर रख दिया उसी समय उन्होंने भगवान को पहचान लिया और उन्होंने फिर नरसंहार बंद कर दिया। पौराणिक कथाओं के अनुसार सती के शरीर के अंग जहां भी गिरे वहीं शक्तिपीठ बन गए।


कालीघाट मंदिर का इतिहास


15वीं और 17वीं शताब्दी के प्राचीन हिंदू मंदिर पवित्र शास्त्रों के अनुसार आज कालीघाट मंदिर की आयु लगभग 200 साल आंकी गई हैं। कालीघाट मंदिर का निर्माण सन् 1809 में हुआ था। इस मंदिर को शहर से सबर्ण रॉय चौधरी नाम के धनी व्यापारी के सहयोग से पूरा किया गया था। वहीं कालीघाट मंदिर में गुप्त के वंश के सिक्के भी मिले थे जिसके बाद ये पता लगा कि गुप्त काल के दौरान भी इस मंदिर में श्रद्धालुओं का आना-जाना रहता था।


कालीघाट मंदिर का महत्व


कालीघाट मंदिर की स्नान यात्रा बहुत ही प्रसद्धि है। पुजारी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर मुर्तियों को स्नान कराते हैं। ये मंदिर अपनी खूबसूरत और अनूठी वास्तुकला के लिए जाना जाता है। यहां तीन पत्थर हैं जो देवी षष्ठी, शीतला और मंगल चंड़ी का प्रतिनिधित्व करते हैंष यहां सबी पुजारी महिलाएं हैं। माना जाता है कि मंदिर में एक कुंड है जिसमें गंगा का पानी है, जिसे बहुत पवित्र माना जाता है। इस स्थान को काकू-कुंड के नाम से जाना जाता है। भक्तों का मानना है कि कुंड में स्नान करने से कई लाभ होते है। ऐसा माना जाता है कि जिनके संतान नहीं है वो यहां आकर संतान प्राप्ति के लिए स्नान करते हैं। स्नान घाट को जोर-बंग्ला के नाम से जाना जाता है।


कालीघाट मंदिर का समय


कालीघाट मंदिर के लिए सुबह 5 बजे से 2 बजे तक और शाम 5 बजे से रात 10:30 तक खुला रहता है। भीड़ से बचने के लिए आप बुधवार या गुरुवार को मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।

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