Aaj Ka Panchang 26 June 2025: आज 26 जून 2025 को आषाढ़ माह का 16वां दिन है। साथ ही आज पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष तिथि प्रतिपदा है। आज गुरूवार का दिन है। सूर्य देव मिथुन राशि में रहेंगे। वहीं चंद्रमा मिथुन राशि से कर्क में प्रवेश करेंगे। आपको बता दें, आज गुरूवार के दिन अभिजीत मुहूर्त 11:56 ए एम से 12:52 पी एम तक रहेगा। इस दिन राहुकाल 02:09 पी एम से 03:53 पी एम तक रहेगा। आज वार के हिसाब से आप गुरूवार का व्रत रख सकते हैं, जो भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इसके अलावा आज से आषाढ़ नवरात्रि शुरू हो रही हैं और इष्टि के साथ चंद्र दर्शन का भी पर्व है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में हम विस्तार से आपको आज के पंचांग के बारे में बताएंगे कि आज आपके लिए शुभ मुहूर्त क्या है। किस समय कार्य करने से शुभ परिणाम की प्राप्ति हो सकती है। साथ ही आज किन उपायों को करने से लाभ हो सकता है।
आज से आषाढ़ नवरात्रि शुरू हो रही है। इसे गुप्त नवरात्रि भी कहा जाता है, तांत्रिक साधना और गहन आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने का विशेष अवसर मानी जाती है। यह नवरात्रि मुख्य रूप से साधकों और तांत्रिकों के लिए महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इसमें मां दुर्गा की गुप्त रूपों में उपासना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान की गई साधना शीघ्र फल देती है और देवी शक्ति की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आषाढ़ नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना से जीवन में छिपे नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और आत्मबल, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
1 से 9 दिन तक घी का दीपक जलाकर “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” मंत्र का जाप करने से दुर्भाग्य दूर होता है। घर के पूजा स्थान में लाल चंदन, लाल पुष्प और मिश्री चढ़ाकर देवी को प्रसन्न किया जा सकता है। नवरात्रि के नौ दिनों में कन्याओं को भोजन कराने और उन्हें लाल वस्त्र, चूड़ियां या कोई भी उपहार देने से घर में सुख-शांति और लक्ष्मी की स्थायी कृपा बनी रहती है। इसके अलावा, अष्टमी या नवमी को हवन करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है और विशेष रक्षा कवच बनता है।
अमावस्या के अगले दिन जब पहली बार चंद्रमा दिखाई देता है, उसे चंद्र दर्शन कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा को देखना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि यह मानसिक शांति, भावनात्मक संतुलन और सौभाग्य का प्रतीक है। मान्यता है कि चंद्र दर्शन करने से मन की चंचलता कम होती है और बुद्धि निर्मल होती है। इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने, सफेद मिठाई या मिश्री का भोग चढ़ाने और “ॐ चं चंद्राय नमः” मंत्र का जाप करने से जीवन में शीतलता और संतुलन बना रहता है।
ईष्टि एक वैदिक यज्ञीय परंपरा है, जिसमें देवताओं को अग्नि के माध्यम से विशेष आहुतियां दी जाती हैं। यह कार्य अमावस्या के अगले दिन या प्रतिपदा को विशेष रूप से किया जाता है। ईष्टि का उद्देश्य होता है—विघ्नों की शांति, सुख-समृद्धि की कामना और पितृ या देव ऋण का निर्वाह। आहुतियों में तिल, घी, जौ, और मधु का प्रयोग करके ईष्ट देव को प्रसन्न किया जाता है। यह गृहस्थों के लिए एक प्रकार का संतुलन साधक यज्ञ है, जो जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा और सकारात्मकता लाता है।
कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी के दिन से सभी मंगल कार्य आरंभ करने की परंपरा है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं और उनके जागते ही चातुर्मास भी समाप्त होता है।
कार्तिक मास की एकादशी को देव उठनी एकादशी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं और इस दिन से ही शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य की भी शुरुआत होती है।
देव उठनी ग्यारस पर भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागकर एक बार फिर संसार के संचालन में लीन हो जाते हैं। इस दिन चातुर्मास भी खत्म होता है और सभी मांगलिक कार्य शुरू होते हैं।
एकादशी तिथि को भगवान श्री विष्णु की पूजा के लिए बेहद ही शुभ माना गया है। इसमें भी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव उठनी एकादशी का महत्व और अधिक है।