शनि जयंती, भगवान शनि के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है, जो ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को आती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह दिन शनि ग्रह के अशुभ प्रभावों को शांत करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत, पूजा-पाठ और दान से व्यक्ति अपने जीवन में शनिदेव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनि देव की उत्पत्ति सूर्य देव और छाया ‘संज्ञा की छाया रूप, से हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि जब छाया गर्भवती थीं, तब उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। उस तपस्या के प्रभाव से शनि देव का रंग जन्म से ही गहरा हो गया।
जब शनि देव का जन्म हुआ, तो सूर्यदेव ने उनके रंग को देखकर छाया पर संदेह किया और उन्हें अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इस अन्यायपूर्ण व्यवहार से शनिदेव क्रोधित हो गए और उनकी दृष्टि जैसे ही सूर्यदेव पर पड़ी, तो सूर्य देव का रंग काला हो गया और वे कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गए।
बाद में जब सूर्यदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उन्होंने छाया से क्षमा मांगी और शनिदेव को पुत्र रूप में स्वीकार किया। यह कथा न्याय और कर्म के सिद्धांत को दर्शाती है, जो शनि देव के चरित्र का मूल है।
शनिदेव को न्याय का देवता और कर्मफलदाता माना गया है। वे व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं, चाहे वह पुरस्कार हो या दंड। इसलिए शनि जयंती के दिन शनिदेव की पूजा करने से शनि दोष, साढ़े साती, और ढैय्या जैसे प्रभावों से राहत मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत और दान करने से जीवन में समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है। साथ ही, इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करना भी अत्यंत शुभ माना गया है।
हार की कोई चिंता नहीं,
पग पग होगी जीत,
माँ की लाल रे चुनरिया,
देखो लहर लहर लहराए,
लाल ध्वजा लहराये रे,
मैया तोरी ऊंची पहड़िया ॥
लाल लाल चुनरी की अजब कहानी,
ओढ़ के आई मेरी अंबे भवानी,