सौभाग्य सुंदरी तीज उत्तर भारत में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जो पारंपरिक हिंदू कैलेंडर के मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष के तृतीया को मनाया जाता है। यह त्यौहार दिसंबर से जनवरी के महीनों के बीच आता है। इस दिन महिलाएं अपने परिवार के कल्याण और समृद्धि के लिए देवी माँ की विशेष पूजा करती हैं। इस त्यौहार को सौभाग्य सुंदरी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं भोलनाथ और माता पार्वती की पूजा करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और दांपत्य जीवन में मिठास बनी रहती है। आईये जानते हैं इस साल यानी 2024 में सौभाग्य सुंदरी तीज कब है? साथ ही जानेंगे इस दिन का महत्व, पूजा विधि और महत्व के बारे में।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष के तृतीया तिथि को सौभाग्य सुंदरी तीज मनाई जाती है। साल 2024 में इस तिथि की शुरूआत 17 नवंबर को रात्रि 09:06 मिनट से हो रही है जो 18 नवंबर को शाम 06:56 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार सौभाग्य सुंदरी तीज 18 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग भी बन रहा है।
इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06:46 बजे से सुबह 07:56 बजे तक रहेगा।
सौभाग्य सुंदरी तीज के दिन महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं। वे पूरे दिन कुछ भी नहीं खाती-पीती हैं। सौभाग्य सुंदरी तीज व्रत सभी पूजा अनुष्ठानों को पूरा करने के बाद खोला जाता है। महिलाएं अपने पति के कल्याण और दीर्घायु के लिए यह व्रत रखती हैं।
सौभाग्य सुंदरी तीज का महत्व विवाहित महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह व्रत अखंड सौभाग्य की प्राप्ति, दांपत्य जीवन में मिठास, पति की दीर्घायु और स्वास्थ्य, परिवार की समृद्धि और आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है। इस व्रत को रखने से महिलाएं माता पार्वती की कृपा प्राप्त करती हैं और सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद पाती हैं। यह त्यौहार विवाहित महिलाओं के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का संचार करता है और उनके दांपत्य जीवन को मजबूत बनाता है।
मुझे चरणों से लगाले,
मेरे श्याम मुरली वाले ।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने दो पक्ष होते हैं । पहला कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष की अवधि 15 दिन की होती है।
प्रदोष व्रत भगवान शिव की पूजा को समर्पित एक पवित्र दिन है। इसे हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत का पालन करने से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मत्स्य द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार को समर्पित है।