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परशुराम जयंती की पूजा विधि

परशुराम जयंती की पूजा विधि

Parshuram Jayanti Puja Vidhi: परशुराम जयंती पर ऐसे करें पूजा, इससे प्राप्त होती है मानसिक शांति 


विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था, जिसे परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ होता है। साथ ही, इस दिन व्रत, पूजा-पाठ और दान का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष परशुराम जयंती 29 अप्रैल को मनाई जाएगी। तो आइए, विस्तार से जानते हैं कि इस दिन किस प्रकार पूजा करनी चाहिए और कौन-कौन सी विधियां अपनानी चाहिए। 

ब्रह्म मुहूर्त में करें भगवान परशुराम की पूजा

  • परशुराम जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठे, क्योंकि यह समय ध्यान, जप और पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • फिर शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान करने के बाद, भगवान परशुराम की पूजा के लिए व्रत का संकल्प लें। 
  • घर के मंदिर या पूजा स्थल को अच्छे से साफ करें। फिर भगवान परशुराम की मूर्ति या फोटो को स्थापित करें और गंगाजल का छिड़काव करके शुद्ध करें।
  • भगवान परशुराम को चंदन और रोली का टीका लगायें। साथ ही, पुष्प और अक्षत अर्पित करें। यह करते समय मन में श्रद्धा और भक्ति का भाव रखें। 
  • पूजा के दौरान ‘ॐ परशुरामाय नमः’ मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें। इस मंत्र के जाप से मानसिक शांति और शारीरिक बल प्राप्त होता है।

परशुराम जयंती पर भगवान परशुराम को तुलसी का पत्ता जरूर करें अर्पित 

तुलसी को पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए परशुराम जयंती के दिन तुलसी का पत्ता भगवान परशुराम को अवश्य अर्पित करना चाहिए। साथ ही, इस दिन तुलसी का सेवन करना भी शुभ माना जाता है।

व्रत, दान और कथा का है विशेष महत्व 

  • परशुराम जयंती के दिन व्रत रखने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, इस दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान करें। इससे भगवान परशुराम अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।
  • इस दिन भगवान परशुराम की कथा सुनना या सुनाना विशेष रूप से फलदायक माना जाता है। इससे वो अत्यन्त प्रसन होते है और आपको उनके आदर्शों को समझने में सहायता मिलती है।

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आचमन क्यों करते हैं?

पूजा-पाठ से लेकर विशेष अनुष्ठान एवं हवन इत्यादि सभी तरह की पूजा में आचमन आवश्यक है। आचमन का शाब्दिक अर्थ है ‘मंत्रोच्चारण के साथ जल को ग्रहण करते हुए शरीर, मन और हृदय को शुद्ध करना।’ शास्त्रों में आचमन की विभिन्न विधियों के बारे में बताया गया है। आचमन किए बगैर पूजा अधूरी मानी जाती है।

प्रयागराज के प्रमुख घाट

प्रयागराज को भारत की धार्मिक राजधानी कहा जाता है। यह नगर सदियों से हिंदुओं की आस्था का केंद्र हुआ है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का संगम होता है।

संगम में स्नान से किसकी पूजा होती है

हिंदू धर्म की धार्मिक परंपराओं में प्रयागराज का खास स्थान है। यहां का त्रिवेणी संगम बेहद पवित्र माना जाता है। इस जगह पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का मिलन होता है।

महाकुंभ में अखाड़ों की पेशवाई क्यों होती है

महाकुंभ की शुरुआत में 15 दिन से कम का समय रह गया है। 13 जनवरी से इसकी शुरुआत होने जा रही है।इससे पहले अलग-अलग अखाड़े प्रयागराज में अपनी पेशवाई निकल रहे हैं और नगर प्रवेश कर रहे हैं।

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