नरसिंह जयंती भगवान विष्णु के चौथे अवतार, नरसिंह भगवान के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आता है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, नरसिंह रूप में भगवान विष्णु ने आधे नर और आधे सिंह का रूप धारण कर अधर्म का नाश किया था। इस दिन भगवान नरसिंह ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए हिरण्यकश्यप का वध किया था। इसी कारण से इस दिन व्रत एवं विधिपूर्वक पूजा करने से सभी दुखों और भय का अंत होता है।
पूजा के समय भगवान नरसिंह के मंत्रों का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इसलिए मंत्रों का जाप कम से कम 11, 21 या 108 बार करें। इन मंत्रों से व्यक्ति के मन में साहस और ऊर्जा का संचार होता है और शत्रुओं तथा बाधाओं का नाश होता है।
गोवर्धन पूजा का त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाता है। यह पर्व उस ऐतिहासिक अवसर की याद दिलाता है जब भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों को प्रकृति के प्रकोप से बचाने के लिए इंद्र के अहंकार को कुचल दिया था।
नरसिंह द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के सिंह अवतार की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।
एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार जब प्रह्लाद भगवान विष्णु की स्तुति गाने के लिए अपने पिता हिरण्यकश्यप के सामने अड़ गए, तो हिरण्यकश्यप ने भगवान हरि के भक्त प्रह्लाद को आठ दिनों तक यातनाएं दीं।
होलाष्टक का सबसे महत्वपूर्ण कारण हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है। खुद को भगवान मानने वाला हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद की भक्ति से नाराज था।