अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जो इस साल 30 अप्रैल को मनाई जाएगी। यह तिथि अत्यंत शुभ और फलदायी मानी जाती है। इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है। खास तौर से माता लक्ष्मी की आराधना कर उनसे सुख, शांति और समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। वैदिक शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन देवी लक्ष्मी को विशेष प्रकार का भोग अर्पित करने से जीवन में कभी धन और सुख-शांति की कमी नहीं होती।
अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी को गाय के दूध से बनी खीर में केसर, इलायची और मेवे डालकर अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह भोग मां लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय है और इसे अर्पित करने से जीवन में धन, वैभव और मानसिक शांति का वास होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खीर में प्रयुक्त केसर पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है तथा इलायची सौभाग्य की सूचक है और मेवे समृद्धि का प्रतीक हैं।
गाय का दूध ‘अमृत तुल्य’ माना जाता है। जब इसी दूध से बनी खीर को माता लक्ष्मी को अर्पित किया जाता है, तो यह पूजा को शुद्धता प्रदान करती है और मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
मां लक्ष्मी को सूजी और गेहूं के आटे से बना हुआ हलवा भी अत्यंत प्रिय है। इसे गाय के देशी घी में बनाकर मां लक्ष्मी को भोग लगाना अत्यंत फलदायक माना जाता है। सूजी और आटे का हलवा शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इसलिए यह अर्पित करने से भक्तों के घर में न केवल धन की वृद्धि होती है, साथ ही पारिवारिक जीवन में शांति भी बनी रहती है।
अक्षय तृतीया पर सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और घर के पूजा स्थान पर देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। जल, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य के साथ विधिवत रूप से पूजा करें। फिर खीर और हलवा का भोग लगाएं और अंतिम में आरती करें।
हर वर्ष आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयदशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाता है जो कि अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है।
जब बरसों के इंतजार के बाद श्रीराम शबरी की कुटिया में पहुंचे, तो उनके बीच एक अनोखा संवाद हुआ।
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है, जो भगवान राम और उनकी भक्त शबरी के बीच के पवित्र बंधन का प्रतीक है।
शबरी जयंती सनातन धर्म में महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। हर साल माता शबरी के जन्मोत्सव के रूप में शबरी जयंती मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, शबरी जयंती फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है।