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माता लक्ष्मी के प्रसिद्ध स्त्रोत

माता लक्ष्मी के प्रसिद्ध स्त्रोत

दिवाली पर इन स्त्रोत से करें माता लक्ष्मी की आराधना, मानसिक शांति के साथ हो सकता है समृद्धि में इजाफा


जैसा कि आप सभी जानते हैं मां लक्ष्मी के कुल आठ स्वरूप हैं। वैसे तो दीपावली पर हम सभी मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं लेकिन मां लक्ष्मी के अष्ट स्वरूपों में से प्रत्यक्ष स्वरूप को प्रसन्न करने हेतु मां लक्ष्मी के इन अष्ट स्वरूपों से संबंधित स्त्रोत का पाठ कर आप मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं। 

इस आलेख में जानिए मां लक्ष्मी के किस स्वरूप को प्रसन्न करने के लिए किस रूप के स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। जिससे शीघ्र ही आपकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएं।  


श्री अष्टलक्ष्मी स्त्रोतम:


आदि लक्ष्मी


सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये ।
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते ।।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ।।


मां आदि लक्ष्मी का यह स्वरूप मोक्ष प्राप्ति प्रदान करने वाला है। संपूर्ण चराचर जगत के संचालन में मां लक्ष्मी प्रभु श्री विष्णु नारायण के साथ विराजमान होकर सृष्टि के संचालन में सहयोग करती हैं। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार आदि लक्ष्मी मां लक्ष्मी का प्रथम स्वरुप है।


धन लक्ष्मी


धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये ।
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते ।
जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ।।


मां लक्ष्मी के इस स्वरूप में आप देखेंगे कि उनके पास धन से भरा हुआ कलश है। एक हाथ में कमल धारण किए हुए हैं। महालक्ष्मी का यह स्वरूप अत्यंत तेजोमय है। मां लक्ष्मी का यह स्वरूप धन, वैभव, शांति देने वाला है। जब भगवान विष्णु कुबेर जी से लिए गए ऋण को चुकाने में असमर्थ हुए तब भगवान विष्णु को मां लक्ष्मी के इसी स्वरूप ने ऋण से मुक्त करवाया था।


धान्य लक्ष्मी


अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये ।
क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् ।।


धन-धान्य से परिपूर्ण परिवार ही जीवन में आनंद प्राप्त करता है। मां लक्ष्मी का यह रूप मां अन्नपूर्णा के रूप में भी जाना जाता है। मां लक्ष्मी के इसी स्वरूप को प्रसन्न करने के लिए कभी भी अन्न का निरादर, अपमान या अनादर नहीं करना चाहिए।


गज लक्ष्मी


जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये ।
रधगज तुरगपदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते ।।
हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम् ।।


मां लक्ष्मी का यह स्वरूप हाथी पर सवार है। मां लक्ष्मी के इस स्वरूप को राजलक्ष्मी भी कहा जाता है। कृषि, किसानी से जुड़े व्यक्ति या व्यवसाय कृषि है या वे जो निसंतान है जिन्हें संतान प्राप्ति कि लालसा है, ऐसे लोग मां लक्ष्मी के गज लक्ष्मी के रूप में उक्त स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं।


सन्तान लक्ष्मी


अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये ।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते ।।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम् ।।

 

मां लक्ष्मी का यह स्वरूप अपने भक्तों का संतान रूप मे लालन, पालन, पोषण व रक्षण करता है। मां लक्ष्मी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के रूप में भी जाना जाता है। इस स्वरूप में मां लक्ष्मी बालक स्कंध को अपने गोद में लिए हुए हैं। जो व्यक्ति संतान प्राप्ति की इच्छा से मां लक्ष्मी के इस स्वरूप को प्रसन्न करता है उसे संतान सुख की अवश्य ही प्राप्ति होती है।


वीर लक्ष्मी


जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रमये ।
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।।
भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम् ।।
  

मां लक्ष्मी का यह स्वरूप वीरता, साहस, धैर्य का प्रतीक है। जो व्यक्ति मां लक्ष्मी के इस स्वरूप की पूजा स्तोत्र पाठ कर प्रसन्न करता है। उसकी कभी अकाल मृत्यु नही होती है। मां के इस स्वरूप को कात्यायनी के रूप में भी पूजा जाता है जिन्होंने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था।


विजय लक्ष्मी


जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये ।
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते ।।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम् ।।


मां लक्ष्मी के इस स्वरूप की कृपा से व्यक्ति को यश कीर्ति मान सम्मान आदि की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी के इस स्वरूप को जया लक्ष्मी के रूप में भी पूजा जाता है। जो व्यक्ति मां लक्ष्मी के इस रूप की साधना करता है उसे जीवन के हर क्षेत्र में जय की प्राप्ति होती है।


विद्या लक्ष्मी


प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये ।
मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे ।।
नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम् ।।


मां लक्ष्मी का अंतिम स्वरूप विद्यालक्ष्मी है। मां लक्ष्मी के इस स्वरूप की कृपा से जातक ज्ञान, कला, कौशल, अध्यात्म को प्राप्त कर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सम्मान को प्राप्त करता है। मां लक्ष्मी के इस स्वरूप की पूजा करने से जातक में संपूर्ण प्रतिभाओं का विस्तार होता है।


इस प्रकार अष्ट लक्ष्मी के ऊपर वर्णित भिन्न भिन्न स्वरूपों को प्रसन्न करने के लिए आप उपरोक्त स्रोतों का पाठ कर मां लक्ष्मी को प्रसन्न पर मनवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं।


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मार्गशीर्ष शुक्ल की मोक्षदा एकादशी (Margshersh Sukal Ki Mouchda Ekadashi) )

इतनी कथा सुन महाराज युधिष्ठिर बोले- हे दशी जनार्दन आपको नमस्कार है। हे देवेश ! मनुष्यों के कल्याण के लिए मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का नाम एवं माहात्म्य वर्णन कर यह बतलाइये कि उसकीएकादशी माहात्म्य-भाषा विधि क्या है?

माघ कृष्ण की षट्तिला एकादशी (Magh Krishna ki Shattila Ekaadashee)

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माघ शुक्ल की जया नाम की एकादशी (Magh Shukal Ki Jya Naam Ki Ekadashi)

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फाल्गुन कृष्ण विजया नाम एकादशी व्रत (Phalgun Krishna Vijaya Naam Ekaadashi Vrat)

इतनी कथा सुन महाराज युधिष्ठिर ने फिर भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा कि अब आप कृपाकर फाल्गुन कृष्ण एकादशी का नाम, व्रत का विधान और माहात्म्य एवं पुण्य फल का वर्णन कीजिये मेरी सुनने की बड़ी इच्छा है।

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