दिवाली का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। साल 2024 में दिवाली 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी। कहा जाता है कि दिवाली के दिन हर घर में माता लक्ष्मी का आगमन होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक कृष्ण अमावस्या तिथि को प्रदोष काल में स्थिर लग्न में दिवाली पूजन करने से अन्न-धन की प्राप्ति होती है। दिवाली पर माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश और कुबेर जी की पूजा का भी महत्व बताया गया है।
दिवाली के दिन शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। जीवन से कभी भी धन और ऐश्वर्य कम नहीं होता है। लेकिन काफी लोगों के मन में एक सवाल रहता है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को तो भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास और रावण का वध कर अयोध्या वापस लौटे थे, इसलिए दिवाली मनाई जाती है। लेकिन फिर इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा क्यों की जाती है। ऐसे में चलिए इस सवाल का जवाब आगे लेख में जानते हैं…
दिवाली पर लक्ष्मी पूजा को लेकर भी कई सारी मान्यताएं और कथाएं हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दिवाली को लक्ष्मी पूजा का कारण समुद्र मंथन है। दरअसल जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था तो उसी में से लक्ष्मी माता भी निकली थीं। यह मान्यता है कि जिस दिन लक्ष्मी निकली थीं, उस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या थी। इसी वजह से यह दिन ही दिवाली के तौर पर मनाया जाता है। माता लक्ष्मी का समुद्र मंथन से आगमन हो रहा था। सभी देवता हाथ जोड़कर आराधना कर रहे थे। इस वजह से दिवाली को लक्ष्मी की पूजा की जाती है। हालांकि, कुछ कहानियों में जिक्र है कि लक्ष्मी माता शरद पूर्णिमा के दिन प्रकट हुई थी, जो दिवाली से ठीक 15 दिन पहले आती है।
कई लोगों का कहना है कि भारतीय कालगणना के अनुसार 14 मनुओं का समय बीतने और प्रलय होने के पश्चात् पुनर्निर्माण व नई सृष्टि का आरंभ दीपावली के दिन ही हुआ था। इस वजह से लक्ष्मी की पूजा की जाती है। जबकि कई लोग ये कहते हैं कि कार्तिक मास की पहली अमावस्या ही नई शुरुआत और नव निर्माण का समय होता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि दिवाली के दिन कई राक्षसों का अंत हुआ था, जिसमें नरकासुर, बली आदि शामिल हैं। इसलिए दिवाली को अच्छा संकेत माना जाता है और समृद्धि के देवी यानी लक्ष्मी को पूजा जाता है।
नरसिंह जयंती का पर्व भगवान विष्णु के चौथे अवतार, श्री नृसिंह भगवान के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार इस समय साल का दूसरा महीना यानी वैशाख माह चल रहा है। ये कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाएगा और इसके बाद शुरू होगा ज्येष्ठ माह। इस आम भाषा में जेठ महीना भी कहा जाता है।
हिंदू पंचांग में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्त्व होता है। 12 मई 2025, सोमवार को वैशाख पूर्णिमा और बुद्ध पूर्णिमा दोनों ही हैं। यह दिन धार्मिक दृष्टि से बहुत शुभ माना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल 13 मई 2025 से ज्येष्ठ मास की शुरुआत हो रही है, जो 11 जून तक चलेगा। यह महीना गर्मी का चरम समय होता है और धार्मिक रूप से भी बहुत खास माना गया है। इस महीने को 'बड़ा महीना' भी कहा जाता है। सूर्य देव इस समय अपनी तेज किरणों से गर्मी बढ़ा देते हैं।