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देश में दिवाली मनाने के अलग-अलग तरीके और परंपरा

देश में दिवाली मनाने के अलग-अलग तरीके और परंपरा

कहीं गाय को पूजते हैं तो कहीं मां काली की होती है पूजा, दीपावली पर अलग-अलग लोक परंपराएं 


भारत की सांस्कृतिक विविधता दिवाली के पर्व में भी स्पष्ट रूप से झलकती है। दिवाली का त्योहार भारतीय संस्कृति की विविधता का भी प्रतीक है। भारत के हर कोने में इसे अलग-अलग रीति-रिवाजों और मान्यताओं के साथ मनाया जाता है। जो इस कहावत को सही साबित कर देती है। "कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी।" दिवाली के अवसर पर लक्ष्मी-पूजन के साथ अलग-अलग क्षेत्रों में भगवान राम, श्रीकृष्ण, काली माता और यहां तक कि गायों की भी पूजा की जाती है। तो आइए जानते हैं कि अलग-अलग राज्यों में दिवाली पर कौन सी अनोखी परंपराएं निभाई जाती हैं।


कैसे मनाते हैं गुजरात में दीपावली


गुजरात में दीपावली केवल रोशनी का पर्व नहीं, बल्कि नए साल के आगमन का प्रतीक भी मानी जाती है। दीपावली की रात से पहले घरों के आंगन में रंगोली सजाई जाती है और देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर के अंदर लक्ष्मी के चरण-चिह्न भी बनाए जाते हैं। साथ ही घरों में देसी घी के दीये पूरी रात जलाए जाते हैं। और अगली सुबह इन दीपों की लौ से काजल तैयार किया जाता है जिसे बेहद ही शुभ और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन व्यापारी वर्ग अपने नए बही-खाते की शुरुआत करते हैं। जिसे ‘चोपड़ा पूजन’ कहा जाता है।


उत्तर भारत में रामायण से जुड़ी है दिवाली


उत्तर भारत जिसमें हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली शामिल हैं। यहां, दिवाली के पर्व को भगवान राम की अयोध्या वापसी और श्रीकृष्ण की लीलाओं से जोड़कर देखा जाता है। यहां पहले दिन यानी नरक चतुर्दशी को श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के वध करने का जश्न मनाया जाता है।

दूसरे दिन धनतेरस मनाया जाता है, जो भगवान धन्वंतरि और कुबेर की पूजा का दिन होता है। तीसरा दिन लक्ष्मी पूजन का होता है, जिसमें देवी लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। वहीं, चौथे दिन गोवर्धन पूजा किया जाता है। ये दिन श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा पर आधारित है। जबकि, पाँचवां दिन भाई दूज यानी भाई-बहन के रिश्ते के पर्व के रूप में मनाया जाता है। 


हरियाणा में अनोखी परंपरा


बता दें कि हरियाणा में गाँवों में घर की दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाई जाती है। जिस पर परिवार के सदस्यों के नाम भी लिखे जाते हैं। लोग अस्त्र-शस्त्र की पूजा भी करते हैं और सिक्कों से भरे दूध का छिड़काव घर में शुभता के लिए किया जाता है।


महाराष्ट्र में गौ-पूजन की रहती है धूम


महाराष्ट्र में दिवाली का पर्व चार दिनों तक चलता है जो इस प्रकार है। 


1. वसुबरस: इस दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है।

2. धनतेरस: इस दिन व्यापारी अपने बही-खाते की पूजा करते हैं।

3. नरक चतुर्दशी: इस दिन सूर्योदय से पहले उबटन करके स्नान करने की परंपरा है।

4. लक्ष्मी पूजन: इस दिन घरों में करंजी, चकली, लड्डू जैसे स्वादिष्ट और पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।


तमिलनाडु में नवविवाहितों का विशेष त्योहार


तमिलनाडु में दिवाली को थलाई दिवाली कहा जाता है। इसमें नवविवाहित जोड़ों को लड़की के घर में विशेष रूप से बुलाया जाता है। वे घर के बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं और एक पटाखा जलाकर उत्सव की शुरुआत करते हैं। वहीं, इस दिन मंदिर जाकर भगवान का आशीर्वाद लेना भी अनिवार्य होता है। यहां, नरक चतुर्दशी के दिन विशेष स्नान और रंगोली बनाने की भी परंपरा है।


कर्नाटक में नरकासुर वध का मनाते हैं जश्न 


कर्नाटक में दिवाली के पहले दिन को अश्विजा कृष्ण चतुर्दशी कहा जाता है। जिसे नरक चतुर्दशी के रूप में मनाते हैं। इस दिन लोग तेल स्नान करते हैं। क्योंकि, ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने नरकासुर वध के बाद अपने शरीर पर लगे रक्त के धब्बों को हटाने के लिए तेल से स्नान किया था। दूसरे दिन को बाली पदयमी कहा जाता है, जो राजा बली की कहानियों से जुड़ा है। महिलाएं इस दिन रंगोली बनाती हैं और गाय के गोबर से घर लीपती हैं।


एमपी में आदिवासी नृत्य की परंपरा


मध्य प्रदेश और इससे टूटकर बने राज्य छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय द्वारा विशेष नृत्य और गायन के साथ दिवाली मनाई जाती है। धनतेरस के दिन घर के मुख्य द्वार पर यमराज के नाम का एक दीपक जलाया जाता है ताकि मृत्यु को घर से दूर रखा जा सके। यहाँ रंगोली की जगह मांडना बनाने की परंपरा प्रचलित है।


आंध्र प्रदेश में सत्यभामा का होता है पूजन


आंध्र प्रदेश में दिवाली पर हरिकथा सुनाई जाती हैं। मान्यता है कि भगवान कृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। इसलिए सत्यभामा की मिट्टी की मूर्तियों की विशेष पूजा की जाती है।


पश्चिम बंगाल में ख़ास होती है काली पूजा 


पश्चिम बंगाल में दिवाली को महाकाली की पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घरों के बाहर रंगोली बनाई जाती है। और मध्यरात्रि में महाकाली की आराधना की जाती है और नृत्य के साथ इस दिव्य त्योहार का आनंद लिया जाता है।


ओडिशा में आद्या काली की होती है पूजा


वहीं, ओडिशा में दिवाली के दिन आद्या काली की पूजा की जाती है। जिसे यहां विशेष महत्व दिया जाता है।


गोवा में लोकगीत और पारंपरिक व्यंजन


गोवा में दिवाली के अवसर पर पारंपरिक नृत्य और गीत की प्रस्तुति होती है। यहां भी श्रीराम और श्रीकृष्ण से जुड़ी कहानियां सुनाई जाती हैं।

दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है, और पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लिया जाता है।


रामायण से जुड़ी है अवध की दिवाली 


अवध क्षेत्र यानी अयोध्या में दीपावली का विशेष महत्व है। क्योंकि, यह भगवान राम की अयोध्या वापसी से जुड़ा हुआ है। पूरे कार्तिक माह के दौरान लोग यहां प्रतिदिन घी के दीये जलाते हैं।


अमावस्या की रात तक घरों के आंगन, तुलसी के पौधे, नीम और पीपल के पेड़ के नीचे मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं। यह भी माना जाता है कि इन दीयों के प्रकाश से खेतों में उपजे कीटों और कीटाणुओं का नाश होता है, जो कृषि के लिए लाभदायक है।


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