महामाया मंदिर छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के रतनपुर में स्थित देवी दुर्गा, महालक्ष्मी को समर्पित एक मंदिर है और 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में देवी माता के कई सिद्ध मंदिर है, जिनमें माता के शक्तिपीठ हमेशा से ही विशेष महत्वपूर्ण रहे है। इन्ही में से एक है रतनपुर स्थित मां महामाया देवी मंदिर। कहा जाता है कि देवी महामाया का पहला अभिषेक और पूजा-अर्चना कलिंग के महाराज रत्रदेव ने 1050 में रतनपुर में की थी। रतनपुर एक छोटा शहर है, जो मंदिरो और तालाबों से भरा हुआ है, जो छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले से लगभग 24 किलोमीटर दूर है। देवी महामाया को कोसलेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है, जो पुराने दक्षिण कोसल क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। महामाया मंदिर में माता का दाहिना स्कंध गिरा था। भगवान शिव ने स्वंय अविभूर्त होकर उसे कौमारी शक्तिपीठ का नाम दिया था। माना जाता है कि नवरात्र में यहां की गई पूजा कभी निष्फल नहीं मानी जाती है।
12वीं-13वीं शताब्दी में बना ये मंदिर देवी महामाया को समर्पित है। इसे रतनपुर के कुलचुरी शासनकाल के दौरान बनाय गया था। कहा जाता है कि उस स्थान पर स्थित है जहां राजा रत्नदेव ने देवी काली के दर्शन किए थे। मूल रुप से मंदिर तीन देवियों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के लिए था। बाद में महाकाली ने पुराने मंदिर को छोड़ दिया। राजा बाहर साईं द्वारा एक नया मंदिर बनाया गया था जो देवी महालक्ष्मी और देवी महासरस्वती के लिए था। मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1552 में हुआ था। मंदिर का जीर्णोद्धार वास्तुकला विभाग द्वारा कराया गया है। मंदिर की स्थापत्य कला भी बेजोड़ है। गर्भगृह और मंडप एक आकर्षक प्रांगण के साथ किलेबंद है, जिसे 18वीं शताब्दी के अंत में मराठा काल में बनाया गया था। परिसर के अंदर शिव और हनुमान जी के मंदिर भी हैं। परंपरागत रुप से महामाया रतनपुर राज्य की कुलदेवी है।
नवरात्र महामाया मंदिर के लिए प्रमुख उत्सव के अवसर होते हैं। नवरात्र हर साल में दो बार मनाए जाते हैं, प्रत्येक नौ दिनों की अवधि में भव्य समारोह, विशेष पूजा और देवी के अभिषेक का आयोजन किया जाता है। भक्त पूरे नौ दिन उपवास रखते हैं। हजारों लोग देवी के दर्शन के लिए मीलों पैदल यात्रा करते हैं। नवरात्रों के पूरे नौ दिन तक कलशों को जीवित रखा जाता है। इसीलिए इन्हें अखंड मनोकामना नवरात्र ज्योति कलश भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर आप उचित उपवास, पूजा और देवी की अर्चना का पालन करते हैं तो देवी आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती है।
जो भी भक्त माता महामाया के दर्शन करने रतनपुर आते हैं, वो सबसे पहले महामाया मंदिर के कुछ दूर पहले स्थित भैरव बाबा के मंदिर पर रुककर दर्शन करते हैं। भैरव बाबा की ये प्रतिमा प्राचीन है और इसकी ऊंचाई दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। माना जाता है कि भगवान शिव जब देवी सती के शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटक रहे थे। उस वक्त भगवान विष्णु ने उनको वियोग मुक्त करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिये थे। माता के अंग जहां-जहां गिरे वहीं शक्तिपीठ स्थापित हुए। माता का यहां दाहिना कंधा गिरा था।
महामाया रतनपुर मंदिर सुबह 6 बजे से शाम 8 बजे तक खुलता है। मंदिर के दर्शन का समय त्योहारो, अवसरों और विशेष दिनों के दौरान बदल सकता है।
हवाई मार्ग - महामाया रतनपुर मंदिर के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा रायपुर हवाई अड्डा है। यहां से मंदिर की दूरी 156 किमी है। भरत के सभी शहरों से रायुपर के लिए नियमित उड़ाने है। हवाई अड्डे के बाहर से भक्त टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं।
रेल मार्ग - महामाया रतनपुर मंदिर के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन बिलासपुर स्टेशन है। बिलासपुर रेलवे स्टेशन से महामाया मंदिर रतनपुर के बीचे की दूरी 33 किलोमीटर है। भारत के कई रेलवे स्टेशनों के लिए यहां से नियमित ट्रेनें चलती है।
सड़क मार्ग - सभी प्रमुख शहरो से मैहर के लिए राज्य परिवहन निगम की नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। छत्तीसगढ़ के कई शहरों और कस्बों से महामाया मंदिर तक कई बसें चलती है।
हिंदू धर्म में चतुर्दशी तिथि का विशेष महत्व है। मासिक शिवरात्रि का व्रत भगवान शिव के प्रति भक्ति और आस्था का प्रतीक है। इस दिन विधिपूर्वक पूजा और व्रत करने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सनातन धर्म में मौनी अमावस्या बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। हिंदू धर्म शास्त्रों में इस दिन स्नान और दान की पंरपरा सदियों से चली आ रही है। मौनी अमावस्या के दिन पितृ धरती पर आते हैं।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, माघ का महीना 11वां होता है। इस माह में पड़ने वाले व्रत का विशेष महत्व होता है। इनमें मौनी अमावस्या भी शामिल है। माघ माघ की अमावस्या को मौनी अमावस्या भी कहा जाता है।
हिंदू धर्म में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव को समर्पित किया गया है। इस दिन को हर महीने मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। भक्तगण इस दिन व्रत रखते हैं और भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं।