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भोरमदेव मंदिर, छत्तीसगढ़ ( Bhoramdev Temple, Chhattisgarh)

भोरमदेव मंदिर, छत्तीसगढ़ ( Bhoramdev Temple, Chhattisgarh)

भारत सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा एक देश है, जहां पर हर कोई अपने धर्म और संस्कृति का आदर करता है। भारत के कोने-कोने में स्थित हर धर्म के जुड़े स्मारक और मंदिर देश को एकता के दागे में बांधते हैं। उन्हीं में से आज हम एक मंदिर के बारे में बात करने जा रहे है, जिसे छत्तीसगढ़ का खजुराहों भी कहा जाता है। भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के चौरागांव में स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जिसे लगभग 1000 साल पुराना माना जाता है। भोरमदेव मंदिर का निर्माण लगभग सातवीं से 11वीं शताब्दी के बीच का बताया जाता है। इस मंदिर में खुजराहों मंदिर की काफी झलक देखने को मिलती है, जिसके कारण भोरमदेव मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहों भी कहा जाता है। ये मंदिर महादेव को समर्पित है। भोरमदेव मंदिर में चार मंदिर हैं। 


छत्तीसगढ़ का खजुराहो


11वीं शताब्दी में बना भोरमदेव मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहों कहा जाता है। खजुराहो के मंदिर में हाथ से बनी प्रतिमा किसी को भी हैरान कर देती हैं। वहीं सुंदर शिल्पकला का अनूठां संगम भोरमदेव मंदिर की प्रतिमाओं में देखने को मिलती है। सुंदर शिल्पकला की वजह से खजुराहों के मंदिर से भोरमदेव मंदिर की तुलना की जाती है। 


भोरमदेव मंदिर का वास्तुकला


भोरमदेव मंदिर का इतिहास 10वीं से 12वीं शताब्दी के बीच कलचुरी काल का माना जाता है। भोरमदेव मंदिर के निर्माण का श्रेय फैनिनगवंश के लक्ष्मण देव राय और गोपाल देव को दिया गया है। मंदिर परिसर को 'अक्सर पत्थर में बिखरी कविता' के रुप में जाना जाता है। इस क्षेत्र के गोंड आदिवासी भगवान शिव की पूजा करते थे, जिन्हें वे भोरमदेव कहते थे इसीलिए इस मंदिर को भोरमदेव मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।


भोरमदेव मंदिर की नक्काशी


भोरमदेव मंदिर की नक्काशी की बात करें तो इस मंदिर की संरचना कोणार्क मंदिर और खजुराहो से मिलती जुलती है। गर्भगृह मंदिर का प्राथमिक परिक्षेत्र है जहां शिवलिंग के रुप में पीठासीन देवता शिव की पूजा की जाती है। भोरमदेव मंदिर एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है, पूरे मंदिर में पत्थरों को काटकर सुंदर नक्काशी की गई हैं। जो देखने में बहुत ही खूबसूरत लगती है। इस मंदिर में वैष्णव और जैन प्रतिमाएं भारतीय संस्कृति और कला के दर्शन कराती है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार में गंगा और यमुना की प्रतिमाएं दिखती है। मंदिर में भगवान शिव और भगवान गणेश के साथ-साथ भगवान विष्णु के दस अवतारों की छवियों को भी दीवारों में चित्रित देखा जा सकता है।


भोरमदेव मंदिर का महत्व


भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जिसे स्थानीय लोग विशेष भक्ति और श्रद्धा से पूजते हैं। यहां पर महाशिवरात्रि और नवरात्रि के दौरान लाखों भक्त आकर भगवान शिव की पूजा करते हैं। मंदिर में होने वाले उत्सव और महोत्सव लोगों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं और धार्मिक अनुष्ठान का महत्व बताते हैं।


भोरमदेव मंदिर का समय


भोरमदेव मंदिर की यात्रा पर जाने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं को बता दें कि भोरमदेव मंदिर श्रद्धालुओं के घूमने के लिए हरदिन सुबह 5 बजे से 12 बजे तक और शाम 5 बजे से रात 9 बजे तक खुलता है। आपको यहां बता दें कि भोरमदेव मंदिर में किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।


भोरमदेव मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - भोरमदेव मंदिर का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा रायपुर है, जो मंदिर से लगभग 135 किमी की दूरी पर है। हवाई अड्डे पर उतरने के बाद आप टैक्सी या स्थानीय साधनों से मंदिर पहुंच सकते हैं।


रेल मार्ग - भोरमदेव मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन राजधानी रायपुर में स्थित है। रायपुर के लिए किसी भी प्रमुख शहर से ट्रेन ले सकते हैं। यहां से आप मंदिर के लिए टैक्सी बुक करके मंदिर पहुंच सकते हैं।


सड़क मार्ग - भोरमदेव मंदिर सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए ये मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। आप रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग जैसे शहरों से आसानी से मंदिर पहुंच सकते हैं।


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गुरु प्रदोष व्रत: शिव मृत्युञ्जय स्तोत्र का पाठ

प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को किया जाता है, जो भगवान शिव को समर्पित तिथि है। इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष के प्रदोष व्रत का वर्णन और महत्व धार्मिक ग्रंथों और पंचांग में बताया गया है।

प्रदोष व्रत क्यों रखा जाता है?

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। दरअसल, यह व्रत देवाधिदेव महादेव शिव को ही समर्पित है। प्रदोष व्रत हर माह में दो बार, शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।

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