विधाता तू हमारा है,
तू ही विज्ञान दाता है ।
बिना तेरी दया कोई,
नहीं आनन्द पाता है ॥
तितिक्षा को कसौटी से,
जिसे तू जांच लेता है ।
उसी विद्याधिकारी को,
अविद्या से छुड़ाता है ॥
सताता जो न औरों को,
न धोखा आप खाता है ।
वही सद्भक्त है तेरा,
सदाचारी कहाता है ॥
सदा जो न्याय का प्यारा,
प्रजा को दान देता है ।
महाराजा ! उसी को तू,
बड़ा राजा बनाता है ॥
तजे जो धर्म को,
धारा कुकर्मों को बहाता है ।
न ऐसे नीच पापी को,
कभी ऊंचा चढ़ाता है ॥
स्वयंभू शंकरानन्दी तुझे जो जान लेता है ।
वही कैवल्य सत्ता की महत्ता में समाता है ॥
........................................................................................................सुनो सुनो हनुमान जी,
एक जरुरी काम जी,
सुनते सबकी पुकार,
जो भी श्रद्धा और प्रेम से है,
सूरज चंदा तारे उसके,
धरती आसमान,
जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया। मेरे राम ॥