तेरे भवन के अजब नज़ारे,
तेरे गूँज रहे जयकारे,
बाण गंगा के पावन किनारे,
भक्तो ने डेरे डाले ॥
तू जब-जब हमको बुलाये,
हम दौडे आये भवन तुम्हारे,
माँ तेरी बस एक इशारे,
चले आये तेरी द्वारे,
हमे अपना बनाले,
चरणों से लगाले,
और जाये माँ,
कहाँ ओ मेरी वैष्णो माँ ॥
ओ मेरे वैष्णो माँ ! ओ मेरे वैष्णो माँ !
ओ मेरे वैष्णो माँ ! ओ मेरे वैष्णो माँ !
मैया तुम्हारे हाथ में,
रहता सदा त्रिशूल है,
तेरी ही किरपा से ओ माँ,
खिलते चमन मे फुल है,
पालकी मे बैठ कोई,
दर पे तुम्हारे आ रहा,
कोई लगा के जयकारे,
चढ़ता चडाई जा रहा,
पार सबको उतारे,
जो भी आये तेरे द्वारे,
थाम लेती हाथ माँ,
ओ मेरी वैष्णो माँ ॥
ओ मेरे वैष्णो माँ ! ओ मेरे वैष्णो माँ !
ओ मेरे वैष्णो माँ ! ओ मेरे वैष्णो माँ !
दर्शन को आती भीड़ माँ,
दर तेरे शेरों वाली,
नौ रातों मे भवन की माँ,
शोभा बड़ी निराली,
जगते कही है ज्योत माँ,
गूंजे कही जयकारे है,
तेरी एक झलक को पाने को,
आते तुम्हारे प्यारे है,
तेरे छू के चरण,
हो दुख का हरण,
सुख बांटे तू सदा,
ओ मेरी वैष्णो माँ ॥
ओ मेरे वैष्णो माँ ! ओ मेरे वैष्णो माँ !
ओ मेरे वैष्णो माँ ! ओ मेरे वैष्णो माँ !
आते रहेंगे वैष्णो माँ,
तेरे दर पे हर साल हम,
छाले पड़ जाये पाँव में,
लेकिन ना रुकेंगे हम,
तकदीर सभी की जगती है,
माँ तेरे दरबार में,
करना हमको भी निहाल माँ,
ममता के प्यार से,
हर साल बुलाना,
हमे दर्श दिखाना,
ये है दील की तमन्ना,
ओ मेरी वैष्णो माँ ॥
ओ मेरे वैष्णो माँ ! ओ मेरे वैष्णो माँ !
ओ मेरे वैष्णो माँ ! ओ मेरे वैष्णो माँ !
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं रखती हैं। इस दिन महिलाएं वटवृक्ष की पूजा, सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ और वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म की सबसे प्रमुख व्रत परंपराओं में से एक है, जिसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सौभाग्य और समृद्ध जीवन के लिए करती हैं। इस व्रत का वर्णन महाभारत, स्कंद पुराण, और व्रतराज जैसे शास्त्रों में विस्तार से मिलता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने आने वाली मासिक कार्तिगाई तिथि का विशेष धार्मिक महत्व होता है। विशेष रूप से दक्षिण भारत में यह पर्व अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
हिंदू पंचांग में कुछ दिन विशेष संयोग और त्योहारों के कारण अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इस साल 26 मई भी ऐसा ही एक दिन है, जब एक नहीं बल्कि चार बड़े धार्मिक पर्व एक साथ पड़ रहे हैं।