परदेस जा रहे हो,
कैसे जियेंगे हम,
कैसे जियेंगे हम कन्हैया,
कैसे जियेंगे हम,
दिल लेके जा रहे हो,
कैसे जियेंगे हम ॥
नैना बने हो आप ही,
काजल बने थे हम,
जब नैना ही बंद होंगे,
जब नैना ही बंद होंगे,
कैसे जियेंगे हम,
परदेस जा रहे हों,
कैसे जियेंगे हम ॥
मूरत बने थे आप ही,
मंदिर बने थे हम,
जब मंदिर ही बंद होंगे,
जब मंदिर ही बंद होंगे,
कैसे जियेंगे हम,
दिल लेके जा रहे हो,
कैसे जियेंगे हम ॥
चंदा बने थे आप ही,
चकवी बने थे हम,
जब चंदा ही ना रहा तो,
जब चंदा ही ना रहा तो,
कैसे जियेंगे हम,
दिल लेके जा रहे हो,
कैसे जियेंगे हम ॥
ऐसी क्या भूल हो गई,
मुझसे मेरे प्रीतम,
जब साँसे ना रही तो,
जब साँसे ना रही तो,
कैसे जियेंगे हम,
परदेस जा रहे हों,
कैसे जियेंगे हम ॥
कैसी है प्रीति तेरी,
कैसी सजा दिया है,
जब प्राण ना रहे तो,
जब प्राण ना रहे तो,
कैसे जियेंगे हम,
परदेस जा रहे हों,
कैसे जियेंगे हम ॥
परदेस जा रहे हो,
कैसे जियेंगे हम,
कैसे जियेंगे हम कन्हैया,
कैसे जियेंगे हम,
दिल लेके जा रहे हो,
कैसे जियेंगे हम ॥
फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली मनाई जाती है। इस दिन पूरा देश अबीर-गुलाल और रंग में सराबोर रहता है। हर कोई एक-दूसरे पर प्यार के रंग बरसाते हैं। होली के रंगों को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।
सनातन हिंदू धर्म में, अन्वाधान व इष्टि दो प्रमुख अनुष्ठान हैं। जिसमें भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किया करते हैं। इसमें प्रार्थना व पूजा कुछ समय के लिए यानी छोटी अवधि के लिए ही की जाती है।
फरवरी माह में प्रकृति में भी बदलाव आता है, मौसम में ठंडक कम होने लगती है। पेड़ों पर कोमल पत्ते आने लगते हैं। इस साल फरवरी में गुरु मार्गी होंगे और सूर्य, बुध भी राशि परिवर्तन करेंगा। इसलिए यह महीना बहुत खास रहने वाला है।
इष्टि यज्ञ वैदिक काल के प्रमुख अनुष्ठानों में से एक है। संस्कृत में ‘इष्टि’ का अर्थ ‘प्राप्ति’ या ‘कामना’ होता है। यह यज्ञ विशेष रूप से मनोकामना पूर्ति और जीवन में समृद्धि लाने के उद्देश्य से किया जाता है।