माँ रेवा थारो पानी निर्मल,
खलखल बहतो जायो रे..
माँ रेवा !
अमरकंठ से निकली है रेवा,
जन-जन कर गयो भाड़ी सेवा..
सेवा से सब पावे मेवा,
ये वेद पुराण बतायो रे !
माँ रेवा थारो पानी निर्मल,
खलखल बहतो जायो रे..
माँ रेवा !
मेरी जिंदगी में ग़मों का ज़हर है,
विष पीने वाले छुपा तू किधर है,
पत राखो गौरी के लाल,
हम तेरी शरण आये ॥
उलट पलट कर दी लंका,
वीर बलवान जी,
पटना के घाट पर,
हमहु अरगिया देब,