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किसलिए आस छोड़े कभी ना कभी (Kisliye Aas Chhauden Kabhi Na Kabhi)

किसलिए आस छोड़े कभी ना कभी (Kisliye Aas Chhauden Kabhi Na Kabhi)

किस लिए आस छोड़े कभी ना कभी,

क्षण विरह के मिलन में बदल जाएंगे ।

नाथ कब तक रहेंगे कड़े एक दिन,

देखकर प्रेम आंसू पिघल जाएंगे ॥

॥ किस लिए आंस छोड़ें..॥


सबरी केवट जटायु अहिल्याजी के,

पास पहुंचे स्वयं छोड़कर के अवध ।

ये हैं घटनाएं सच तो भरोसा हमें,

खुद-ब-खुद आप आकर के मिल जाएंगे ॥

॥ किस लिए आंस छोड़ें..॥


दर्श देने को रघुवर जी आएंगे जब,

हम ना मानेंगे अपनी चलाये बिना ।

जाने देंगे ना वापिस किसी शर्त पर,

बस कमल पद पकड़कर मचल जाएंगे ॥

॥ किस लिए आंस छोड़ें..॥


फिर सुनाएंगे खोटी-खरी आपको,

और पूछेंगे देरी लगाई कहां?

फिर निवेदन करेंगे न छोड़ो हमें,

प्रभु की जूठन प्रसादी पे पल जाएंगे ॥

॥ किस लिए आंस छोड़ें..॥


स्वप्न साकार होगा तभी राम जी,

"जन" पे हो जाए थोड़ी कृपा आपकी ।

पूर्ण कर दो मनोरथ यह "राजेश" का,

जाने कब प्राण तन से निकल जाएंगे ॥


किसलिए आस छोड़ें, कभी ना कभी,

क्षण विरह के मिलन में बदल जाएंगे॥

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काशी के कोतवाल काल भैरव

काशी के राजा भगवान विश्वनाथ और कोतवाल भगवान काल भैरव की जोड़ी हिंदू पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

काल भैरव जंयती के उपाय

शास्त्रों में भगवान काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान कालभैरव की पूजा-अर्चना करने से बुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है।

गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa)

प्रथम वंदनीय गणेशजी को समर्पित मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना का विशेष महत्व है।

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है। इसी लिए विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता गणेश जी को समर्पित गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि का बनी रहती है।

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