सबको अमृत बांटे,
खुद विष पि जाते है,
देवों के देव है ये,
महादेव कहलाते है ॥
ये औघड़ दानी है,
संग मात भवानी है,
दुनिया दीवानी है,
ये डमरू बजाते है,
देवो के देव है ये,
महादेव कहलाते है ॥
माथे पर है चंदा,
और जटा में है गंगा,
कटे चौरासी फंदा,
जो इनका ध्यान लगाते है,
देवो के देव है ये,
महादेव कहलाते है ॥
गले सर्पो की माला,
तन पे है मृगछाला,
पि के भंग का प्याला,
ये भस्म रमाते है,
देवो के देव है ये,
महादेव कहलाते है ॥
शिव शंकर भोलेनाथ,
रख दो मेरे सिर पे हाथ,
दे दो ‘वशिष्ठ’ का साथ,
हम तुम्हे मनाते है,
देवो के देव है ये,
महादेव कहलाते है ॥
सबको अमृत बांटे,
खुद विष पि जाते है,
देवों के देव है ये,
महादेव कहलाते है ॥
श्री गुरु चरण चितलाय के धरें ध्यान हनुमान ।
बालाजी चालीसा लिखे “ओम” स्नेही कल्याण ।।
बन्दहुँ वीणा वादिनी धरि गणपति को ध्यान |
महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण ||
जय जय जय प्रभु रामदे, नमो नमो हरबार।
लाज रखो तुम नन्द की, हरो पाप का भार।
जैसे अटल हिमालय और जैसे अडिग सुमेर ।
ऐसे ही स्वर्ग द्वार पै, अविचल खड़े कुबेर ॥