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हयग्रीव माधव मंदिर, हाजो, असम (Hayagriva Madhava Temple, Hajo, Assam)

हयग्रीव माधव मंदिर, हाजो, असम (Hayagriva Madhava Temple, Hajo, Assam)

भगवान विष्णु के हयग्रीव रूप का मंदिर, हिंदुओं के साथ-साथ बौद्ध धर्म के लोग भी करते हैं पूजा 



गुवाहाटी से लगभग 30 किलोमीटर पश्चिम में, हाजो शहर में, असम के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है हयग्रीव माधव मंदिर। हिंदुओं के साथ-साथ बौद्धों द्वारा अत्यधिक पूजनीय इस मंदिर में भगवान विष्णु की एक छवि स्थापित है, जो पुरी में भगवान जगन्नाथ की छवि से मिलती है। बौद्ध धर्म का पालन करने वाले बौद्ध लामा और भूटिया भी इस मंदिर को एक प्रमुख तीर्थ स्थल मानते हैं। हयग्रीव मंदिर भारत के असम राज्य में हाजो में मणिकूट नामक पहाड़ पर स्थित एक हिंदू मंदिर है। ये विष्णु के हयग्रीव रुप को समर्पित है। 



10वीं सदी में बना था मंदिर 



ऐतिहासिक कामरूप में 11वीं शताब्दी में रचित कालिका पुराण में हयग्रीव अवतार की उत्पत्ति व उनकी इस पहाड़ पर स्थापना का वर्णन है। माना जाता है कि वर्तमान का मंदिर निर्माण सन् 1583 में राजा रघुदेव नारायण ने किया था। हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि वास्तव में इसे कामरूप के पाल राजवंश ने 10वीं शताब्दी में बनवाया था। 



क्या था भगवान विष्णु का हयग्रीव रूप 



भगवान विष्णु का हयग्रीव रुप एक विशिष्ट रुप है जिसमें उनक शरीर मानव का है और सिर घोड़े का है। हयग्रीव को विशेष रूप से ज्ञान और शिक्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है। उनके इस रूप का उद्देश्य ज्ञान और शिक्षा को बढ़ावा देना और बुराई को नष्ट करना है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार असुरों और राक्षसों ने देवताओं को परेशान किया और धरती पर अराजकता फैला दी। इन राक्षसों ने न केवल देवताओं की शक्ति को चुनौती दी, बल्कि वे ज्ञान और सत्य के भी खिलाफ थे।


इस स्थित को नियंत्रित करने के लिए, भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में प्रकट होने का निर्णय लिया। हयग्रीव ने राक्षसों के खिलाफ लड़ाई की और उनके आतंक को समाप्त करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग किया। उनके इस रूप ने उनकी शक्ति और दैवीय ज्ञान को दर्शाया। उन्होंने राक्षसों को पराजित करके धरती पर ज्ञान और शिक्षा की पुनर्स्थापना की। उन्होंने सभी धर्मग्रंथों और पवित्र ज्ञान को सुरक्षित किया और ज्ञान को प्रकाश को फिर स्थापित किया। 



असमिया वास्तुकला के लिए भी मशहूर है मंदिर


 

मंदिर की वास्तुकला विभिन्न शैलियों का अद्भुत मिश्रण है। यह असम की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। जैसे ही आप मंदिर के चारों ओर घूमते हैं, आपको जटिल नक्काशी और सुंदर डिजाइन दिखाई देंगी जो भक्ति और कलात्मक प्रतिभा के लंबे इतिहास को दर्शाते हैं। मंदिर का हर भाग अपनी एक कहानी कहता है। मंदिर की वास्तुकला असमिया वास्तुकला शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें एक शिखर और एक गर्भगृह है। मंदिर में हयग्रीव की पूजा के लिए विशेष अनुष्ठान और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह पूजा ज्ञान और शिक्षा की प्राप्ति के लिए की जाती है, और भक्त यहां पर ज्ञान और बुद्धि का कामना करते हैं।



लुप्तप्राय कछुओं के लिए एक अभयारण्य



इस मंदिर को जो चीज वास्तव में अद्वितीय बनाती है, वह है लुप्तप्राय कछुओं की रक्षा करने में इसकी भूमिका। मंदिर में माधपाकुरी नामक एक तालाब है, जिसे विष्णु पुष्कर के नाम से भी जाना जाता है। यह तालाब कई दुर्लभ और लुप्तप्राय कछुओं की प्रजातियों का घर है। इनमें से कुछ कछुओं को कभी जंगल में विलुप्त माना जाता था। मंदिर का तालाब उन्हें एक सुरक्षित और पोषण करने वाला वातावरण प्रदान करता है।


हयग्रीव माधव मंदिर कैसे पहुंचें


हवाई मार्ग - डिब्रूगढ़ एयरपोर्ट असम का प्रमुख एयरपोर्ट है और यहां से नियमित उड़ाने गुवाहाटी, कोलकाता और अन्य प्रमुख शहरों से आती हैं। एयरपोर्ट से मंदिर तक टैक्सी या स्थानीय परिवहन के द्वारा पहुंचा जाता है।


रेल मार्ग -  डिब्रूगढ़ रेलवे स्टेशन असम के प्रमुख रेलवे स्टेशनों में से एक है और भारत के विभिन्न हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से डिब्रूगढ़ के लिए कई ट्रेनें उपलब्ध है।


सड़क मार्ग - हयग्रीव माधव मंदिर डिब्रूगढ़ शहर के भीतर स्थित है। डिब्रूगढ़ तक पहुंचने के लिए आप सड़क मार्ग को उपयोग कर सकते है।


मंदिर का समय - ये मंदिर सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक। 


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