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वैशेषिक शास्त्र (दर्शन) - Vaisheshik Shaastr (Darshan)

वैशेषिक शास्त्र (दर्शन) - Vaisheshik Shaastr (Darshan)

वैशेषिक दर्शन शास्त्रों में चतुर्थ नंबर का स्थान रखता है, इस शास्त्र की रचना महर्षि कणाद द्वारा की गई है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दर्शन का विकास 300 ई.पू. के आसपास हुआ है। इस दर्शन में आत्मा के भेद तथा उसमें रहने वाले विशेष गुणों का व्याख्यान किया गया है। वैशेषिक शास्त्र के अनुसार लौकिक प्रशंसा और सिद्धि के साधन को धर्म बताया गया है, इसके अनुसार मानव कल्याण के लिए धर्म का आचरण बेहद जरूरी होता है, जिसमें सात पदार्थ निहित हैं। इन सात पदार्थों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है जिसमें द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य,विशेष, समवाय और अभाव पदार्थ में के अंदर अभाव को रखा गया है। इसके अलावा इसमें नौ प्रकार के द्रव्यों का भी वर्णन मिलता है, जो पृथ्वी, आग, तेज, आकाश, वायु, काल, दिक्, आत्मा और मन हैं।

वैशेषिक शास्त्र में दस अध्याय हैं जिनमें प्रत्येक अध्याय में दो-दो आह्निक तथा 370 सूत्र हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य नि:श्रेयस की प्राप्ति है।

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देव दिवाली पितृ कृपा

देव दिवाली, जो कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर मनायी जाती है, भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था, इसके उपलक्ष्य में देवताओं ने स्वर्ग में दीप जलाकर दिवाली मनाई थी।

देव दिवाली की कथा

हिंदू धर्म में देव दिवाली का पर्व विशेष धार्मिक महत्व है। इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही किया था। तब देवताओं ने प्रसन्न होकर दिवाली मनाई।

कार्तिक पूर्णिमा पर गजकेसरी योग

कार्तिक माह की पूर्णिमा को देव दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। इस वर्ष ये पर्व 15 नवंबर को मनाया जाएगा जो सुबह 6:20 बजे से शुरू होकर मध्यरात्रि 2:59 बजे समाप्त होगा।

मंगलवार हनुमान जी का दिन क्यों है

हिंदू धर्म के अनुसार सप्ताह के सात दिन अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित है। इन मान्यताओं के अनुसार हम प्रत्येक दिन किसी-न-किसी देवी-देवता की पूजा आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं।

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