हिंदू धर्म में मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित होता है। इस दिन रामजी के साथ हनुमान जी की भी पूजा की जाती है। साथ ही मंगल देव की उपासना की जाती है। मंगल ग्रह ऊर्जा के कारक हैं। इन्हें ग्रहों का सेनापति भी कहा जाता है। हनुमान जी की पूजा करने से कुंडली में मंगल ग्रह मजबूत होता है। जिससे जातक को करियर और कारोबार में सफलता मिलती है। साथ ही सभी प्रकार के दुख एवं संकट भी दूर हो जाते हैं। अगले मंगल अपनी राशि परिवर्तन करेंगे। इससे कई राशियों को लाभ होगा।
वर्तमान समय में ग्रहों के सेनापति मंगल देव वृषभ राशि में विराजमान हैं। ऊर्जा के कारक मंगल देव अगले साल 21 जनवरी को राशि परिवर्तन करेंगे। मंगल देव 21 जनवरी को मिथुन राशि में गोचर करेंगे। इस राशि में मंगल देव 3 अप्रैल तक रहेंगे। इस दौरान मंगल देव कई बार नक्षत्र भी परिवर्तन करेंगे। मंगल देव की कृपा कई राशि के जातकों पर बरसेगी।
मंगल देव के राशि परिवर्तन करने से कई राशि के जातकों को लाभ होगा। इनमें सबसे अधिक मकर राशि के जातकों को होगा। इस राशि में मंगल देव उच्च के होते हैं। अतः मकर राशि के जातकों पर मंगल देव की विशेष कृपा बरसेगी। इसके साथ ही अगले साल मकर राशि के जातकों को शनि की साढ़े साती से मुक्ति मिलेगी। इसके अलावा, मेष और वृश्चिक राशि के जातकों पर भी मंगल देव की कृपा बरसेगी। उनकी कृपा से दोनों राशि के जातकों को लाभ होगा।
मंगल गोचर के दौरान हर मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा करें। वहीं, पूजा के समय हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य करें। हनुमान जी की पूजा करने से शनि की बाधा भी दूर होती है।
मंगल नए साल 2025 में कई बार एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करेंगे। मंगल गोचर का प्रभाव कुछ राशियों के लिए शुभ तो कुछ राशियों के लिए अशुभ होने वाला है। नए साल में मंगल मेष व वृश्चिक राशि के जातकों के लिए अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होंगे। इन दोनों राशियों के ये स्वामी ग्रह भी हैं। इन राशि के जातकों के जीवन में आर्थिक खुशहाली, करियर में उन्नति व स्वास्थ्य में सुधार आएगा। हालांकि, मिथुन राशि के जातकों को थोड़ी सतर्कता बरतने की जरूरत रहेगी। बता दें कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल की शत्रु राशि मिथुन है।
महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित बाबा काल भैरव मंदिर अपने अनोखे चमत्कार के लिए प्रसिद्ध है। यहां शिवजी के पांचवें अवतार कहे जाने वाले काल भैरव की लगभग 6 हजार साल पुरानी मूर्ति स्थापित है।
सनातन धर्म में नदियों, पहाड़ों और पेड़ पौधों तक को देवताओं के समान पूजने की परंपरा है। यह हमारी धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा है, जिसका संबंध प्रकृति प्रेम, पर्यावरण की रक्षा और ईश्वर की दी गई हर चीज के प्रति सम्मान की भावना और विज्ञान की अवधारणाओं से जुड़ा हुआ है।
धार्मिक कार्यक्रमों और आयोजनों के दौरान हिंदू धर्म में शंख बजाना एक परंपरा है जो युगों-युगों से चली आ रही है। शंख हमारे लिए सिर्फ एक वाद्ययंत्र नहीं हमारी धार्मिक संस्कृति और प्रथाओं का हिस्सा है। यह हमारे लिए आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक भी है।
कुंभ मेला भारतीय संस्कृति की अदम्य शक्ति और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। यह महोत्सव ना सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है। बल्कि, यह आत्मा की शुद्धि और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है।